Book Title: Mangalkalash Kumar Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 2
________________ ॥अथ॥ ॥श्री मंगलकलश रासः प्रारज्यते ॥ ॥ दोहा॥ ॥ प्रणमुं सरसति स्वामिनी। कविजन केरी माय ॥ वीणा पुस्तक धारिणी। कवियणने वरदाय ॥१॥ काश्मीरें जग जाणीयें। मातार्नु अहि गण ॥ बीजु मरुधर देशमा। अकारीयें मंमाण ॥२॥ मनशुप्रणमी करी। मागुं वयण विलास ॥ जेम मुजने सुख ऊपजे। पूगे मननी श्राश ॥३॥ मंगलकलश कुमारनो । रास रचुमन रंग॥देज्यो वयण शोहामणुं। मुक मन बहु उबरंग॥४॥ वली प्रणमुं निज गुरु सदा जेहनो बहु उपकार ॥ ते गुरु उपकारी सदा । जेम जगमां जलधार ॥५॥ उत्तमना गुण वरणवे। श्राखंडल महाराज॥देवसनामांहे बेसिनें। एम नाखे जिनराज॥६॥ उत्तमना गुण बोलीयें। कीजें तीरथ यात्र॥ दान सुपात्रे दीजीयें। निर्मल होवे गात्र ॥७॥ श्री जिन धर्म पसाउलें । पामी बहुली झझि॥सुख जोगवी संसारनां। अविचल पाम सिहि ॥॥ तेणे कारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 94