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चैतन्य-जागरण का अभियान
तेरापंथ एक अध्यात्म का प्रयोग है, चैतन्य जागरण का प्रयोग है । अध्यात्म का अर्थ है—मूर्छा को तोड़ना, मोह के व्यूह का भेदन करना । मूर्छा का एक चक्रव्यूह है । मोह जितना प्रगाढ़ होता है, उतना ही प्रगाढ़ होता है राग और द्वेष | राग और द्वेष जितने प्रगाढ़ होते हैं, उतने ही प्रगाढ़ होते हैं अहंकार और ममकार | अध्यात्म का अर्थ है—अहंकार और ममकार का विसर्जन । तेरापंथ का अर्थ है अहंकार और ममकार का विसर्जन ।
वैज्ञानिकों ने खोजा कि मूल तत्त्व क्या है ? दार्शनिकों ने इस विषय पर बहुत मनन किया । खोज की कि मूल तत्त्व क्या है ? किसी ने कहापानी मूल तत्त्व है । किसी ने कहा-अग्नि मूल तत्त्व है । मूल तत्त्वों के सम्बन्ध में पश्चिम तथा भारतीय दार्शनिकों ने अपनी-अपनी स्थापनाएं प्रस्तुत की । उनमें से पांच भूतों का विकास हुआ । वैज्ञानिक अभी तक मूल तत्त्व की खोज में हैं । खोज अभी भी चल रही है ! आचार्य भिक्षु ने भी सोचा, इस समस्या का, दुःख के चक्र का मूल कारण क्या है ? उन्होंने बताया कि मूल कारण है राग । राग और द्वेष ये दो माने जाते हैं । पर आचार्य भिक्षु ने द्वेष पर विशेष बल नहीं दिया । क्योंकि वह मूल बात नहीं है । द्वेष, अप्रियता मूल तत्त्व नहीं है । वह प्रतिक्रिया है | मूल तत्त्व एक है राग । और राग की प्रतिक्रिया है द्वेष । राग होता है, तब द्वेष होता है । प्रियता का संवेदन होता है, तब अप्रियता का संवेदन होता है। यदि प्रियता न हो, राग न हो तो द्वेष का जन्म नहीं होगा । द्वेष प्रतिक्रियास्वरूप पैदा होता है । मूल तत्त्व नहीं है । मूल तत्त्व है राग । एक संस्कृतं कवि ने बहुत अच्छा लिखा है— दुनिया में बहुत सारे बन्धन हैं । किन्तु प्रेम-रज्जु का बन्धन यानी राग-रज्जु
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