Book Title: Main Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 251
________________ साधन-शुद्धि का सिद्धान्त / २४१ वाली प्रजा अधार्मिक ही रह जाती । धर्म का और अहिंसा का मूल मंत्र है अभय । डराकर कुछ भी किया, वह साधन शुद्ध नहीं माना जा सकता। फिर पूछा गया-डराकर किए जाने वाले कार्य में क्या हुआ? स्पष्ट है, हिंसा हुई। किसी को भी डराना हिंसा है । हिंसा को अहिंसा कैसे माना जा सकता है ? हिंसा को धर्म कैसे माना जा सकता है ? किन्तु ऐसा माना जाने लगा। तब आचार्य भिक्षु ने कहा--- भय के प्रयोग को अहिंसा कैसे माना जा सकता है ? यह कहा जा सकता है कि देखा नहीं गया, रहा नहीं गया और हमने भय का प्रयोग कर बचा डाला | व्यवहार में यह बात ठीक मानी जा सकती है । गांधीजी से पूछा गया-छिपकली आदि जीव दूसरे छोटे-मोटे जीवों को मारते हैं, हम देखते हैं, नहीं छुड़ाते हैं तो आप और हम अहिंसक रह पाएंगे? गांधीजी ने उत्तर दिया-प्रकृति के काम में हस्तक्षेप करना मेरा धर्म नहीं है । प्रकृति अपना काम करती है । मैं कहां-कहां उसमें हस्तक्षेप करूंगा। आचार्य भिक्षु ने कहा-भय पैदा कर अहिंसा की निष्पत्ति करना, अशुद्ध साधन का प्रयोग है। प्रश्न होता है कि इस साधन को अशुद्ध साधन क्यों माना ? यह साधन अशद्ध है निर्वाण और स्वतंत्रता के संदर्भ में। किसी प्राणी की स्वतंत्र चेतना पर आघात या प्रहार करना निर्वाण या मोक्ष का साधन नहीं हो सकता । उस दृष्टि से यह साधन अशुद्ध है । यदि राजनीति की दृष्टि से विचार किया जाए तो यह साधन अशुद्ध नहीं है किन्तु जब हमने साध्य माना है मोक्ष और निर्वाण, उस साध्य के आधार पर चिन्तन करने पर कहना होगा कि भय का प्रयोग शुद्ध साधन नहीं है। दूसरा है-बल-प्रयोग । एक आदमी किसी प्राणी को मार रहा है । एक कसाई बकरे को मार रहा है । एक दयालु व्यक्ति उसके पास गया । उसके हाथ से शस्त्र छीनकर उसे ही मारने लग गया । बकरे को बचा लिया । कसाई को बल-प्रयोग से परास्त कर डाला और समझ लिया कि मैंने बड़ा धर्म किया, अहिंसा का आचरण किया । ____ आचार्य भिक्षु ने इस संदर्भ में कहा—ठीक है । तुम्हें वैसा लगा और कर डाला | तुमने अपना कर्तव्य समझा और उसका आचरण कर लिया । यहां तक तो यह ठीक है । किन्तु अपनी उस प्रवृत्ति को अहिंसा समझ लेना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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