Book Title: Main Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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स्वास्थ्य और प्रसन्नता / २५७ तो मैंने लोहे की सूई को सोने की बनाई है, फिर धोखा कैसे ?' भक्त बोला'यह पत्थर इतने दिनों तक चिमटे में बंधा हुआ ही था | चिमटा लोहे का है, फिर वह मणि-पत्थर के प्रभाव से सोने का क्यों नहीं हुआ ?
संन्यासी ने कहा-'तम ठीक कहते हो । तम्हारा संदेह ठीक है। यह मणि चिमटे से बंधा हुआ था, पर इसके बीच में कपड़े की परतें थीं । चिमटे से इसका सीधा संपर्क नहीं था । इसलिए चिमटा सोने का नहीं हो सका ।' . भक्त का संदेह दूर हो गया।
प्रसन्नता भीतर में होती है । वह बाहर कहीं से लानी नहीं पड़ती । हर्ष और विषाद लाना पड़ता है | प्रसन्नता चेतना की सहजता है । वह बाहर फूटती है। पर बीच में कुछ बाधाएं हैं इसलिए वह अभिव्यक्त नहीं होती।
प्रसन्नता को अभिव्यक्त होने से पूर्व चार बाधाओं को पार करना पड़ता है.
पहली बाधा है—मिथ्या दृष्टिकोण । दूसरी बाधा है—आकांक्षा, इच्छा, चाह । तीसरी बाधा है—भय चौथी बाधा है-अब्रह्मचर्य ।
ये चार बड़ी बाधाएं हैं, जो प्रसन्नता को प्रकट नहीं होने देतीं। एक बात हमें जान लेनी चाहिए कि प्रसन्नता उत्पन्न नहीं होती, वह प्रकट होती है, अभिव्यक्त होती है । उत्पन्न होना और प्रकट होना- दो बातें हैं । उत्पन्न वह माना जाता है, जो पहले नहीं था और आज हो रहा है । जो नहीं था, उसे उत्पन्न किया जाता है । प्रकट वह होता है, जो पहले से था, पर आवरण के कारण दिखाई नहीं दे रहा था । आवरण हटा और वह दिखाई देने लग गया।
सांख्य दर्शन मानता है कि कार्य उत्पन्न नहीं होता, वह प्रकट होता है । इसी प्रकार केवल ज्ञान, अवधिज्ञान, अतीन्द्रियज्ञान होता है, उत्पन्न नहीं किया जाता | ज्ञान बाहर से नहीं लाया जाता । वह तो आत्मा में है। वह आवरण के हटने पर प्रकट होता है । इसी प्रकार. जब ये चार बाधाएं मिट जाती हैं, तब प्रसन्नता प्रकट होती है ।
चित्त की निर्मलता या प्रसन्नता की पहली बाधा है—मिथ्या दृष्टिकोण ।
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