Book Title: Main Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 260
________________ २५० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता इनका पूरा-पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है । यह सारा हिंसा का ही प्रशिक्षण है । हिंसा के साधनों को विकसित करने के लिए अपार धनराशि का व्यय हो रहा है । अरबों-खरबों रुपए के शस्त्रास्त्र बनाए जा रहे हैं । कितने बड़ेबड़े कारखाने चल रहे हैं हिंसा की सामग्री को तैयार करने के लिए | हिंसा का प्रयोग चल रहा है । हिंसा की शोध हो रही है | नये-नये मार्ग, नये-नये साधन खोजे जा रहे हैं । हिंसा की पूरी तैयारी है। इसकी तुलना में बेचारी अहिंसा को कहां खड़ी करें । एक ओर है हिंसा की शक्ति, दूसरी ओर है अहिंसा की शक्ति । अहिंसा की शक्ति के प्रति न आस्था है और न उसके प्रशिक्षण का व्यवस्थित क्रम है । न प्रयोग है, न अनुसंधान है और न पूरी सामग्री है । केवल अहिंसा के प्रतिष्ठान स्थापित हैं । इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है । कभी-कभार अहिंसा के विषय में सेमीनार हो जाते हैं, कुछ गोष्ठियां और चर्चाएं हो जाती हैं, बात समाप्त । अहिंसा की इतनी कमजोर शक्ति और हिंसा की इतनी प्रचंड शक्ति । दोनों की तुलना करता हूं तो, 'अहिंसा सार्वभौम' एक मजाक और मखौल-सा लगने लग जाता है | इस संदर्भ में अहिंसा का जो स्वर उठ रहा है, उसे निरर्थक माना जाए? उसे अस्वाभाविक माना जाए! नहीं, उसे अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता। आज अहिंसा को कोई जिलाए हुए है तो वह है हिंसा की विभीषिका । हिंसा की इतनी विभीषिका नहीं होती तो अहिंसा की चर्चा बन्द हो जाती । किन्तु हिंसा ने मनुष्य के सामने मृत्यु का तांडव नृत्य प्रस्तुत कर डाला है । इसलिए आदमी विकल्प खोज रहा है कि इस मृत्यु के मुख से कैसे बचा जाए | मुंडेर । पर खड़ी मृत्यु से कैसे बचा जाए? जब विकल्प खोजने की बात सामने आती है तब अहिंसा के सिवाय दूसरा कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं होता । एक समय था अहिंसा के कंधे पर चढ़कर हिंसा जी रही थी और आज हिंसा के कंधे पर चढ़कर अहिंसा जीने का प्रयास कर रही है । सहारा हिंसा दे रही है । इस स्थिति में, अन्य विकल्प के अभाव में समूचे संसार में अहिंसा , का स्वर मुखरित हो रहा है। हम भी अहिंसा के स्वर को धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ में नहीं खोज रहे हैं किन्तु जागतिक हिंसा के संदर्भ में खोज रहे हैं। आज का जागतिक संदर्भ हिंसा का है | उसके लिए अहिंसा की चर्चा करें और वह भी व्यक्ति के विन्दु को सामने रखकर, अणुव्रत के मंच से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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