Book Title: Main Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 264
________________ २५४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता है, व्यक्ति में बदलाव आता है और तब अभीप्सित कार्य संपन्न होता है । छोटा बच्चा जब पढ़ने जाता है तब सबसे पहले वह वर्णमाला का अभ्यास करता है । कोई भी अणुव्रती बनने वाला अहिंसा की लिपि को नहीं सीखता तो वह अणुव्रतों की भावना को कैसे जीवन में उतार सकता है ? अणुव्रती ही नहीं, महाव्रती बनने वाला भी अहिंसा की वर्णमाला का अभ्यास नहीं करता । मैंने आज केवल एक प्रश्न को उभारा है । यह इसलिए उभारा है कि ब्रेललिपि का प्रचलन चल रहा है । यह लिपि अंधे व्यक्तियों के लिए है । यह उभरी हुई लिपि है, अंधे पढ़ नहीं सकते, पर अंगुलियों के स्पर्श से उभरी हुई लिपि के आधार पर पढ़-लिख सकते हैं । अहिंसा की लिपि को पढ़ने के लिए व्यक्ति को जितना चक्षुष्मान् होना चाहिए, उतना वह चक्षुष्मान् नहीं है । उस लिपि को पढ़ने के लिए आंख में जितनी ज्योति और शक्ति अपेक्षित है, वह नहीं है । इसलिए उस लिपि को एक बार उभार देना अपेक्षित लगता है । इसलिए मैंने यह प्रश्न उभारा है । इस विषय पर बहुत लंबी चर्चाएं जरूरी हैं। चर्चा ही नहीं, मैं कल्पना करता हूं कि अणुव्रत के मंच से अहिंसा सार्वभौम का कार्यक्रम प्रारंभ हो । उसका तीन सूत्री कार्यक्रम होगा १. अहिंसा के विषय में अनुसंधान २. अहिंसा के प्रयोग ३. अहिंसा का प्रशिक्षण इसके क्रियान्वयन से यह आशा की जा सकती है कि आज अहिंसा को हिंसा से जो चुनौती मिल रही है तो एक समय ऐसा आ सकता है कि अहिंसा हिंसा के सामने चुनौती बनकर उपस्थित हो। इससे मानवजाति की जो विकट समस्या है, उस समस्या का समाधान का एक छोटा-सा बिन्दु, एक छोटी सी प्रकाश-किरण मानव के भाग्याकाश में चमक सकती है और तब पूरी मानवजाति को सुख की सांस लेने का अवसर मिल सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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