Book Title: Lok Prakash Part 02
Author(s): Vinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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(४६१) । परिधिश्चित्यतां स्वयं ॥ ७० ॥ ततः दीरवरहीपा-परं दीरोदवारिधिः॥ कर्पूरपूरमिमीर-पिममंबरपांसुरः ।।७१|| त्रिभागावर्तिचतु-र्नागसबर्करान्वितं ॥ स्वादनीयं दीप. नीयं । मदनीयं वपुष्मतां ॥ २॥ बृंहणीयं च सर्वी गेंद्रियाह्लादकरं परं ॥ वर्णगंधरसस्पर्श-संपन्नमतिपेशलं ॥ ॥ ३ ॥ ईदृग् यच्चक्रिगोदीरं । तस्मादपि मनोहरं ॥ यस्य स्वाददकमिति । दीरोदः प्रथितोबुधिः ॥ ४ ॥ तथा च जीवाभिगमसूत्रे-खममबंडिनववेए रणो चा नो घेरावो पोतानीमेलेज चितवी लेवो. ॥ ७० ॥ हवे ते दीवरद्दीपथी यागळ दीरोदसमुऽ , तथा ते समुड कपुरना समूहसरखा फीणना पिंकना धावस्थी सफेद लागे . ॥ ७१ ॥ त्रण नागोमां फेलायेली चोथा नागनी साकरवाळु, स्वादीष्ट, तथा प्राणीनने तेजस्वी करनारं, काम नपजावनालं, ॥ २ ॥ पुष्टि करनालं, सर्व अंगो तथा इंदिनने खुश करनार, नत्तम वर्ण, गंध, र. स तथा स्पर्शवाळु, अने अति कोमल ॥ ३ ॥ एवं जे चक्रीनी गाय- दूध होय , तेथी पण मनोहर अने स्वादीष्ट एवं था समुद्रनुं जल , अने तेथी ते दीरोदसमुद्रना नामथी प्रसिध थयेल. ॥४॥ तेमाटे जी.

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