Book Title: Lok Prakash Part 02
Author(s): Vinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
(४१६) रूपकबंधुराः ॥ चतुर्दिशं च प्रत्येकं । रम्यास्ते रत्नतोरणैः ॥४१॥ दलीबितदलश्रेणि-गलन्मरंदलेपतः ॥ श्रन्योऽन्यमितरीति-भ्रमभ्रंगतदंगनाः ॥ ४२ ॥ अन रालैर्मरालात्तै-मणालैललितांतराः ॥ श्रामुक्तव्यक्त, गार-हौरवि मनोहराः ॥ ३ ॥ सोपानावतस्वःस्त्रीनूपुरध्वनिबोधितैः ॥ मरालैर्मधुरध्वान-मुंदोपवीणिता श्व ॥ ४ ॥ क्रीमदिव्यांगनोत्तुंग-वदोजास्फालनोर्जितैः ॥ यत्तरंगैः सत्तरंग-रिवांगीकृततांडवाः ।। ४५ ॥ अनोहर थयेली , तथा ते पगथीयांन रत्नोनां तोरणोथी शोभितां थयेला . ॥४१॥ पत्रोपर नगेलां पत्रोनी श्रे णिमांथी निकळता मकरंदना लेपथी परस्पर बीजानी ब्रांतिथी जमता ने नमरा तथा जमरीन जेमां, ॥४२॥क्रीडा करता हंसोए ग्रहण करेला कमलतंतुनथी मनोहर थयेल ने अंदरनो भाग जेनो एवी, तेथी जाणे प्रगटरीते शोभता मोतीनना हारोथी मनोहर लागती, ॥३॥ पगथीयापरथी उतरती देवांगनाना कांफरोना शब्दो. थी जागेला यने मनोहर शब्दोवाळा हंसोवडे जाणे ह. पथी वीणा वगामती, ॥ ४ ॥ तथा क्रीडा करती देवां गनानां जंचां स्तनोमां प्रथमावाथी मनोहररीते उन

Page Navigation
1 ... 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536