Book Title: Lekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Author(s): Pushpashreeji, Tarunprabhashree
Publisher: Yatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur

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Page 4
________________ ለለለለው ልብለለለለ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः 5 श्री शंखेवर पार्षनाथाय नमः कलिकाल कल्पतरु प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि गुरुभ्यो नम: श्री लक्ष्मण गुरुदेवाय नम: "कोंकण केशरी" प.पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. PAGES 2269 அசுவென : दिशा निर्देश : प.पू. मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. : प्रधान संपादिका : श्रमणीवर्या साध्वीजी श्री पुष्पाश्रीजी म.सा. संपादिका :साध्वी श्री तरुणप्रभाश्रीजी VUVW : प्रकाशक : श्री यतीन्द्रसूरि साहित्य प्रकाशन मंदिर ट्रस्ट AAWY आलीराजपुर (म.प्र.) ATION WAVE KARAN VAAVAVAVIN - भौतिक विद्या, भौतिक, ज्ञान-विज्ञान, भौतिक लिप्सा, यह महान राक्षसी माया है, यह अपने निर्माताओं को नष्ट करती ही १ है, अपने भक्तों को अपने उपासकों को भी चिरंतन दुःख प्रदान करती हैं। www.jainelibrary.org Jain Education International

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