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लघुविद्यानुवाद
और नीचे ज्वालिनो दह दह ह ह लिखे, पश्चात अग्नि मण्डल बनावे याने ऊपर त्रिकोणाकार रेखा खीचन र अन्दर तीनो तरफ र कार लिखे। करीव तीनो तरफ मिलाकर बाहर र लिखना चाहिए।
इस यन्त्र को सोना, चादी व तांबे के पत्रे पर खुदवाकर शुद्धि करवाकर, मन्त्र का सवा लक्ष जप करके यन्त्र पास रखे तो सर्वजन वश्य होय और सर्वकार्य सिद्ध होता है । इसमे बडा मन्त्र भी है । सो बडा मन्त्र का साढे बारह हजार जप करना चाहिये । उससे भी वशीकरण होता है । ये दोनो ही मन्त्र अन्तिम श्लोक के मूल है।
इस स्तोत्र रूपी काव्य को जो कोई पढता है, अपने मन मे, भक्ति पूर्वक सुनता है उस पुरुष, के तीनो लोक वशी हो जाता है। बुद्धिमान पुरुपो के समाने देवो के सामने वाक् 'पटुता होती है । सौभाग्य की प्राप्ति होती है । विद्याधरो के समान गौरव को प्राप्त होता है। चक्रेश्वरी देवी के स्तवन से शाकिनी डाकिनी आदि का भी भय,नही होता है।
* उन्हे मत सराहो जिन्होने अनीति व अन्यायपूर्वक सफलता पाई और
सम्पत्ति कमाई क्योकि उनकी दुखद स्थिति और भावी भयानक परिणामो का आपको पता नही । ऐसे कुर्कोमयो से बढकर अभागा कोई नही क्योकि विपत्ति मे उनका कोई साथी नही होता ।
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आलस्य से बढकर घातक और निकटवर्ती शत्रु कोई नही जो हमे तत्काल तो सुखद लगता है पर बाद में यही दुख व पश्चाताप करने का कारण सिद्ध होता है।
** जब ज्ञान इतना घमण्डी बन जाए कि झक न सके, इतना कठोर बन
जाए कि रो न सके, इतना रूखा व गम्भीर बन जाए कि हस न सके
और इतना प्रात्म केन्द्रित बन जाए कि अपने सिवा और किसी की परवाह न करे तो ऐमा ज्ञान, प्रज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध होता है ।