Book Title: Laghu Vidhyanuvad
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
Publisher: Shantikumar Gangwal

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Page 767
________________ नोट - ध्यान रहे कि शुक्ल ध्यान का ही को छोड़कर बाकी पीली, लाल, काली, जो भी वर्ण का ध्यान करने का आया है, उस वर्ण के ह्री को शत्रु के हृदय में ध्यान करे, मारण कर्म के लिये शत्रु के नाभि मे ध्यान करे । लघुविद्यानुवाद (२) अर्थ - जो मनुष्य त्रैलोक्य बोज रूप, अच्छे गुरण वाली, स्तुति रूपी इस माला को तीनो काल अपने हृदय में धारण करता है, उसके गोद मे आठ सिद्धिया अवश्य बनकर नित्य ही आती है और क्रम से मोक्ष पद की प्राति कराती है । १६ । सोना चान्दी बनाने के तन्त्र मालामिमा स्तुतिमयीं सुगुणां त्रिलोकी । बीजस्य यः स्वहृदये निधयेत् क्रमात् सः ।। अष्ट सिद्धिर वशा लुठतीह तस्य नित्यं महोत्सव पदं लभते क्रमात् सः ।। १६ ।। (१) स्वर्ण माक्षिक ८ मासा पारा ४ मासा तावा ४ मासा सुहागा ४ मासा इन सबको मिलाकर 'कुप्पी' मे डाले, फिर अग्नि मे गलावे तो शुद्ध चादी हो । गधक को प्रोटा कर (गर्म कर ) प्याज के रस मे भुजावे १०८ बार फिर उस गधक को चादी के साथ गलावे तो सोना होता है । (४) ६८१ (५) (३) हिगुल शुद्ध १८ तोला, अभ्रक ३२ तोला को एकत्र करके रूद्रवन्ति के रस में घोटकर, चादी के पत्रे पर लेप करके पुट देवे, तो सोना हो । साग बीज एक जात की बूटी होती है । उसके पत्ते की लुगदी में ताबा रखकर अग्नि मे फूके तो स्वर्ण बने । गाथा :- नाग फरिणए मुलं, नागरण तोए एगभनागेण । नागरण होइ सुवरण धमत पुण्ण जोगेण ॥ ( समयसार जयसेनाचार्य की टीका मे लिखा है)

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