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लघुविद्यानुवाद
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मक्खन जैसा बनता है। कुम्भार से एक बेलनी लाना। उसमे खल किया हुआ पारा डालना । एक वीत भरा खड्डा बनाना। दंगका कोयला भट्टी जलाना । उस पर वेलनी रखना। उसमे रिगणी का रस डालना। वेलणी आटे को पाक
करना । पारा और रस प्रोटने के बाद पूरा पारा पीता है। (५) समभाग सावन भाग १, साजो खार भाग १, फटकडो भाग १, सोरा कलमो
भाग १, सख्या समोल १, नवसागर १ व औषध काजल ६ वटिका करना । उस
पर पुट देते जाना, सात बार पुट देना। ताम्र धवल शुद्ध होता है। (६) सफेद फूलोक का कोहला लेकर उसका ऊपरी हिस्सा निकालना। उसकी साक
पकाना । उसमे कथील डालना। पकने के बाद ठडा होने के बाद निकालना । शुभ्र धातु होय ।
पज्यपाद स्वामी कत
सोना बनाने की विधि ___ श्लोक .-पारद पलमेक च हरिताल च तत्समम् ।
गधक च तयो तुल्य मर्दनीय विशेषत । दिनेक सूर्य दुग्धेन पश्चात् छाया विशेषत । कोपिको दूरे विनिक्षिप्य मुख रूध्वा विपाचित ।
रतिमात्र प्रयोगेन दिव्य भवति काचनम् । अर्थ .-पारद १ पल, हरताल' १ पल और गधक १ पल, इन द्रव्यो को लेकर विशेष रूप से
मर्दन करे, आकडे के दूध मे, फिर छाया में सुखाकर उसको सोना गलाने की कुप्पो मे डालकर मुख को रूध करे, फिर अग्नि मे फू के तब एक रसायन तैयार हो जायेगा, उस रसायन को १ रती, तोला ताबे के ऊपर प्रयोग करे तो शुद्ध सोना होता है।
गधक से ताबा को मारकर हिगुलक दोई समान, मनशिल लेप नीबू रस मे मर्दन करे, सीसा के पतरा पर लेप करे, फिर रानगोबिरो के ६ पुट देवे अग्नि में तो कु कुमसार भस्म हो जायेगा। सोलह भाग चादी पर वह एक भाग रसायन भस्म, लेकर कुप्पी मे गलावे तो सोना होता है। श्लोक -गधिक मधु सयुक्त हरी वीर्येन मर्दताम् ।
भूमीस्ता मासमेक तारामायात कचनम् ।
गधक, मद, पारा एकत्र कर खरल करे, दिवस २ शीशी मे भरे, उकरडा मे गाडे मासा १ निकाल कर एक तोला चादी के साथ गलावे तो सोना होता है ।