Book Title: Laghu Vidhyanuvad
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
Publisher: Shantikumar Gangwal

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Page 774
________________ लघुविद्यानुवाद 688 - - पीतल चादी पौलाद रेत 4 भाग कथील भाग 8 एकत्र मुसल मे गलावे, एक मेक हो जाय, तब निकाल कर, जब जिनस घट्ट हो जाय नतर वारीक वाटी तोला कथोल को पानीकरी एक मासा कथील देय तो चादी बने / चांदी बनाने का तंत्र तरबूज सेर पाच से ज्यादा कुछ तौल म होय ऐसा एक तरबूज ताके तले की तरफ तेचकरी काट के उसमे समलखार पैसे दो भर चिथरा मे लपेट कर डारि के तब पेदा तरबूजा की लगाय के कपरौटा सात दफे सुखाय 2 के करना तवगज पुट का आच देना, जब तरबूज जलने नही पावे तब निकाल लेना, तब ताबा तोला 1 पर मासा 1 उपरोक्त रसायन देना तो शुद्ध चादी बने / सोना बनाने का तंत्र शीशा को प्रहर चार अग्नि मे देना जब ठण्डा होय तब तोला एक का पत्र बनाय कर, उसके ऊपर हिगुल तोला 1 नीबू के रस मे खरल कर पत्ते पर चुपड कर दो दीए के बीच मे रखकर बन्द करे, ऊपर कपरौटी करे, सुखावे, सेर एक जगली कण्डे मे उसको फू के, जहा किसी की छाया नही पडे, जब ठण्डा हो तब निकालना, इस भाति सात बार करे तब शीशा की भस्म बनेगी, वेधक होय सो नोला एक चादी भरे तो एक की मात्रा डालने से शुद्ध सोना बनेगा। हीरा बनाने की विधि मए के बीज का तैल तैयार रखे, जब बिनौला अाकाश से पडे, तब तुरन्त अग्नि जलाकर, उस तैल को अग्नि पर चढादे, फिर गर्म करे, उस गर्म तेल मे विनौला ले लेके डालते जाना, सब पत्थर हो जायेगा जम करके वही कोरा हीरा है। लेकिन मऐ की लकडी की ही पाच दे। कडाई को जब वे नीला पत्थर हो जाय तब नीचे उतारना / भाग्य अच्छा हो तो यह कार्य अच्छा हो जाय ।।इति।। श्री मूलसंगे, सरस्वतिगच्छे, बलात्कारगणे कुन्दकुन्दान्वये श्री प्राचार्य आदिसागर अंकलीकर, तत्शीष्य श्री प्राध्यात्मयोगी, समाधि सम्राट दिगम्बर जैनाचार्य आष्टादश भाषाविज्ञ महावीर कीर्तिजी, तत्शीष्य गणधराचार्य चतुर्विध अनुयोगविज्ञ, श्रमरणरत्न, वात्सल्यरत्नाकर, स्याद्वादकेशरी, वादीभसूरी जिनागम सिद्धान्त महोदधि यंत्र, मंत्र, तंत्र शास्त्र विशेषज्ञ श्री कुन्थुसागरेण पूर्वाचार्यानुसार तः, इदं लघुविद्यानुवादानाम ग्रंथ श्री सोनागिरी सिद्धक्षेत्रे वीर निर्वाण 2504 कार्तिक कृष्णा अमावश्या यां समाप्तः। // शुभं भूयात् / /

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