Book Title: Laghu Vidhyanuvad
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
Publisher: Shantikumar Gangwal

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Page 738
________________ लघुविद्यानुवाद प्रियगु) लज्जावती के चूर्ण की गोलिया बनावे, उन गोलियो को बरावर नमक सहित एक बर्तन मे डालकर पका । इन गोलियो को भोजन आदि के साथ खिलाने से स्त्री वश में होती है । ६५२ बड, गूलर, पीपल, पिलखन, अ जोर के दूध तथा पडुको रस मे कपास, आक, कमल सूत्र, सेमल की रूई, सन की बनी हुई बत्ती को भावना देकर काले तिलो का दीपक जलाने से तीन लोक वश में होते है । निर्गुण्डी और सफेद सरसो घर के द्वार पर अथवा दुकान के द्वार पर रक्खी जावे तो अच्छा क्रय-विक्रय होता है । जो स्त्री काजिका ( सौवीर ) के साथ जवे के फूल को मल कर ऋतु काल मे पीती है, वह फिर मासिक से नही होती है, यदि हो भी जावे तो गर्भ धारण तो कभी भी नही करती है । कृष्णपक्ष की चतुर्दशी या अष्टमी सहदेवि लाकर चूर्ण करे, फिर जिसको पान मे खिलावे तो सात दिन मे प्राता है । उत्तर दिशा मे उत्पन्न होने वाली कौच की जड को गो मूत्र मे पीसकर उसका मस्तक पर तिलक करने से शाकिनी उसमे अपना प्रतिबिम्ब देखती है । रवि पुष्यामृत के योग मे ब्राह्मी, शतावरी, शखा होली, अधा जारा, जावत्री, केशर मालकारणी, चित्रक, अकलकरो और मिश्री का चूर्ण करके सर्व सम भाग लेकर, सवेरे १४ कोमल अदरख के रस मे २१ दिन तक खाने से बुद्धि की वृद्धि होती है । पुष्यार्के योग मे काला धतुरे की जड अथवा सफेद धतुरे की जड शनिवार को निमन्त्रण देकर, रविवार को सध्या काल में नग्न होकर ग्रहरण करे, फिर कन्या कत्रीत सूत लपेटकर, धूप खेवे, फिर उस जड को अपने कमर मे बाघने से स्वप्न मे वीर्य का कभी स्खलन नही होता है । पुण्यार्क अथवा हस्तार्क मे रूद्रवति और ( ) का पचाग लेकर पानी मे गोला बनाकर रक्खे, जव कार्य पडे तब अपने शरीर मे लेप करने से अग्नि शीतल के समान लगती है । याने अग्नि मे नही जलता है । मूलार्क योग मे सरपखा का पचाग, वीसरखपरा का पंचाग, इन्द्रवारुणी का पंचाग शिव लिंगी का पंचाग, इन सब को एकत्र करके पेट पर लेप करने से उदर रोग शात होते है ।

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