Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01
Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd
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सज्ञाप्रकरणम
१०
'तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् १ । १ । ६ ।
वर्षाना स्थानानि
७
ताल्वादिस्थानमाभ्यन्तरप्रयत्नश्चेत्येतदद्वयं यस्य येन तुल्यं तन्मिथ यो सतविधायक जासिम् सवर्णसंज्ञ ं स्यात् । (ऋलुवर्णयोमिथः सावराय वाच्यम्) । श्र कुह विस र्जनीयानां कण्ठः । इचुयशानां तालु । ऋटु र षाणां मूर्धा । "लू तु ल सानां दन्ताः । उपूपध्मानीयानामोष्ठौ । ञ म ङ ण नानां नासिका च। एदैतोः कण्ठतालु । ओदौतोः कण्ठोष्टम् । वकारस्य दन्तोष्ठम् । जिह्वामूलस्य जिह्वामूलम् । नासिकाऽनुस्वारस्य आभ्यन्तरम्यल भेदनिरूपणम्) तिरुपत्नो द्विधा - श्राभ्यन्तरो बाह्यश्च । 'आद्यः पञ्चधा - स्पृष्ट षत्स्पृ
१ - प्रास्ये = मुखे भवम् प्रास्यं = स्थानम्, प्रकृष्टो यत्नः प्रयत्नः = श्राभ्यन्तरप्रयत्न इत्यर्थः । ( सम्बन्धिशब्दमहिम्ना ) स्थानप्रयत्नौ ययोः परस्परं तुल्यौ तौ मिथः सवर्णौ इत्यय सूत्रार्थः ।
७- चकारा
२ - प्रकार कवर्ग-हकार - विसर्गाणां कण्ठः स्थानम् । ३-इकार- चवर्ग- यकार-शकार णां तालु स्थानम् । ४-ऋकार- टवर्ग-रेफ- षकाराणां मूर्धा स्थानम् । ५ - कार -तवर्ग-लकारसकाराणां दन्ताः स्थान । ६ - उकार-पवर्गोपष्मानीयानाम् श्रोष्ठौ स्थानम् । देषा यथायथ कण्ठादिव मपि स्थानं बोध्यम् । इति स्थानानि । ८- प्रायः प्रकार अ इ उ ऋ इन वर्षों में प्रत्येक के अठारह अठारह भेद होते हैं । लृ वर्ण के are भेद होते हैं; क्योंकि वह दीर्घ नहीं होता । एचों के भी बारह बारह ही भेद होते हैं: क्योंकि वे ह्रस्व नहीं होते ।
श्राभ्यन्तरः ।
१० - तालु आदि स्थान और श्राभ्यन्तर प्रयत्न जिन वर्णों के तुल्य हों उनकी परस्पर सवर्ण संज्ञा होती है (ॠ और लृ वर्ण की परस्पर सवर्ण संज्ञा कहनी चाहिये) । कार, कवर्ग, हकार और विसर्जनीय इनका कण्ठ स्थान है । इकार, चवर्ग, यकार और शकार इनका तानु स्थान है । ऋकार, टवगं, रेफ तथा षकार इनका मूर्धा स्थान है । लृकार, तवर्ग, लकार, तथा सकार इनका दन्त स्थान है । उकार, पवर्ग उपमानीय इनका श्रेष्ठ स्थान है । ञकार-मकार ङकार- रणकार-नकार इनका नासिका स्थान भी है । ( चकार से ताल्वादि भी है) । ए और ऐ का कण्ठतालु स्थान है ।
और का कोष्ठ स्थान है । वकार का दन्तोष्ठ स्थान है । जिह्वामूलीय का जिह्वामूल स्थान है । अनुस्वार का नासिका स्थान हैं ।
प्रयत्न दो प्रकार का है; श्राम्यन्तर और बाह्य । श्राम्यतर प्रयत्न पाँच प्रकार का