Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01 Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri Publisher: Motilal Banrassidas Pvt LtdPage 12
________________ पुत्र भी भानुदीक्षित और पौत्र श्री हरिदीक्षित थे। डा० श्री वेलबेलकर भोलि दीक्षित का समय ईसवी सन् १६०० से १६५० के मध्य में मानते हैं । लघुकौमुदी और मध्यकौमुदी भट्टोजि दीक्षित के शिष्य श्री वरदराज ने पाणिनीय व्याकरण के प्रथम प्रवेशार्थी सुकुमारमति बालकों के सुखबोध के लिए सिद्धान्त कौमुदी का अत्यन्त सरल एवं लघुकाय संस्करण लघुकौमुदी के रूप में सम्पन्न किया। वस्तुतः यह छोटी-सी पुस्तक पाणिनीय व्याकरण रूपी महाप्रासाद में प्रवेश पाने के लिये प्रथम सोपान रूप है। पुस्तक के प्रारम्भ में श्री घरदराज स्वयं लिखते हैं--'पाणिनीय-प्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम' पुनः अन्त में इसे और भी स्पष्ट करते हैं कि 'शास्त्रान्तरे प्रविष्टानां बालानां चोपकारिका, कृता वरदराजेन लघुसिद्धान्तकौमुदी' । और बाद में लघुकौमुदी द्वारा साधारण ज्ञान को प्राप्त हुए विद्यार्थियों की शानवृद्धि के लिए श्री वरदराज ने द्वितीय सोपान के रूप में मध्यकौमुदी का सम्पादन किया.। कहते हैं अपने शिष्य की इस अनुपम कृति को देखकर गुरुवर भट्टोजि दीक्षित को सन्देह हो गया था कि मध्यकौमुदी को पड़ने के बाद मेरी सिद्धान्तकौमुदी को कौन पड़ेगा 'वास्तव में मध्यकौमुदी, सिद्धान्तकौमुदी का सार-सर्वस्व है। लघुकौमुदी का प्रकरण-क्रम मध्यकौमुदी के समान लघुकौमुदी का प्रकरण-विन्यास भी सिद्धान्तकौमुदी की अपेक्षा भिन्न है। संधि, षडलिङ्ग और अव्यय-प्रकरण के बाद स्त्रीप्रत्यय और कारक आदि प्रकरणों को पहले न रखकर तिङन्त प्रकरण को रखा गया है। बाद में कृदन्त, कारक, समास, तद्धित और सबके अन्त में स्त्रीप्रत्यय रखे गये हैं । यह प्रकरणक्रम युक्तियुक्त भी है। सर्वप्रथम वाक्य में अर्थज्ञान के लिए पदच्छेद अपेक्षित होता है, इसलिए सन्धिप्रकरण पहिले रखना ठीक है । अनन्तर सुबन्त पद ज्ञान के लिए षडलिंग तथा अव्ययप्रकरण और तिङन्त पदशान के लिए तिङन्तप्रकरण पाना अत्यावश्यक है। क्योंकि स्त्रीप्रत्यय, कृत्तद्धित समाससापेक्ष हैं अतः स्त्रीप्रत्ययों को सबके अन्त में रखना युक्तिसंगत है, और कारकों का समास से पूर्व रहना भी ठीक जंचता है, क्योंकि विभक्त्यर्थज्ञान पर ही समासप्रक्रिया निर्भर है। तीनों का कलेवर सिद्धान्तकौमुदी में अष्टाध्यायी के समस्त ३६५५ सूत्रों की विशद ब्याख्या ऊहापोह एवं शास्त्रार्थ-पद्धति से की गयी है।Page Navigation
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