Book Title: Kshirarnava
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 12
________________ तरह कुशल है । उपरोक्त पाँचों जातिमें पंचोली अपनेको उच्च मानते हैं । यज्ञोपवित भी धारण करते हैं। स्थापत्याधिकारी शिल्पग्रंथोंमें उल्लेख है कि यजमानको चाहिये कि गुणदोष परखकर वह शिलका सत्कार करें । और अपने कार्यका प्रारम्भ करें । शास्त्रकारोंने बाँधकामके अधिकारीके चार वर्ग बनाये हैं । १ स्थपति (प्रमुख) २ सूत्रग्राही जिसको शिल्पीओंकी भाषामें "सुतर छोड!" कहते हैं । वह नकशे बनानेमें और कार्यकी शुरूआत करनेवाला निपुण होता है। ३ तक्षक-सूत्रमानके प्रमाणको जाननेवाला सुंदर-काष्ट या पाषाणादि कार्य या नकशीरूप करनेवाला करानेवाला ४ वर्धकी-दो प्रकार है । एक तो काष्टकर्म करनेवाला वर्धकी (सुथारसूत्रधार) और दूसरा माटीकार्यमें निपुण-मोडलीस्ट । भारतीय शिल्पीयोंकी प्रशंसा जहाँ शिल्पीओंने जड पाषाणको सजीवरूप देकर पुराण के काव्यको हुबहु बताया है, जिसका दर्शनकर गुणज्ञ प्रेक्षकों शिल्पीकी सर्जनशक्तिकी प्रशंसा करते नहीं थकते हैं, यहाँ टंकनके शिल्पसे तथा पिंछीके चित्रसे ये शिल्पी अमर कृतियोंका निर्माण कर गये हैं । अखंड पहाडमेंसे कंडारी हुई इलोराकी काव्यमय विशाल स्थापत्यकी रचना तो शिल्पीकी अद्भूत चातुर्य कलाका वेनमून प्रतीक है। भारतके शिल्पीओंने पुराणोके प्रसंगोंको पाषाणमें सजीव कंडारें हैं । उनके ओजारकी सर्जनशक्ति परमप्रशंसाके पात्र है । पाषाणके शिल्प परसे शौर्य और धर्मबोध प्राप्त होता है । जडपाषाणको वाणी देनेवाले कुशल शिल्पी भी कवि ही हैं। वे बहुत धस्यवादके पात्र हैं। अलबत्त कला किसी धर्म या जातिकी नहीं है । वह तो समग्र मानव समाजकी है। जड पाषाणमें प्रेम, शौर्य, हास्य, करुणा या किसी भी भावको मूर्त करना कठिन है। चित्रकार तो रंगरेखासे वह सरलतासे बता सकता है। परंतु शिल्पी असे रंगोंकी सहायके बिना ही पाषाणमें भावकी सृष्टि खड़ा करता है। उधर ही उसकी अपूर्व शक्तिका परिचय होता है । भारतीय शिल्प स्थापत्य आज भी जिवन्त कला है । युरोपिय शिल्पीओंके साथ तुलना करते कहना पड़ता है कि भारतीय शिल्पका लक्षण अपनी कृतिमें केवल भावना उतारनेका होता है । जब युरोपी शिल्पी तादृश्यताका निरूपण करता है। उन दोनोंके मर्तिविधानका उदाहरण लें । अनेक कवियोंने स्त्रीकी प्रकृति विकृतिके गुणगान किये हैं। उसके सौंदर्यका पान करानेवाले भवभूति और कालिदास जैसे महान कविओंने

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