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द्रविड शिल्पग्रंथों में काश्यपशिल्प और मयमतम् और शिल्परत्नमें तो सिर्फ तीन ही जातियाँ बताई गई हैं। १ नागर २ द्रविड ३ वेसर। भारतके पूर्व, पश्चिम, उत्तर प्रदेशों में नागर, दक्षिण में नीचे, द्रविड और उन दोनोंके बिचके प्रदेशोंमें वेसर जातिके प्रासादोंकी शैली प्रवर्तमान है ऐसा बताया है।
कामिकागम को बाद करते बाकी के द्रविड वास्तुग्रन्थों में जो उपरोक्त जातिका विवरण किषा गया है उसके लक्षणके आधार पर केवल दक्षिणके द्रविड मंदिरों को ही लागु होता है। उत्तर भारत की नागर शैली दक्षिण भारत की नागर शैलीकी विभावना एक दूसरेसे विलकुल भिन्न है। द्रविड मंदिरों कोशलमें राजीवलोचन और सौराष्ट्र के बीलेश्वरका प्रख्यात है।
लतिन, भूमिज, फासना और वलभीके प्रकार बहुधा प्रादेशिक शैली के प्रख्यात है। सांधारकी व्याख्याके अनुसार प्रदक्षिणा मार्ग सहितके प्रासाद, उनके लक्षण और प्रकारका वर्णन अस्पष्ट है । प्रदक्षिणा मार्गवाले प्रासादों द्रविड के अलावा बहुत-सी प्रांतीय शैलीके हैं। भारत के पृथक् पृथक् भागों में प्रवर्तमान जातिके बारेमें कई प्राचीन शिल्पग्रंथकारोंने सर्वदेशीयतासे जातिके वर्णनके साथ कहा है। __ अपराजितपृच्छामें सम्पूर्ण विगतसे नागरशैलीका वर्णन उत्तर भारत के दूसरे प्रादेशिक लक्षणभेद को बाद करते गुजरात, राजस्थान के ग्यारहवीं सदीके बाव बनाये हुए मंदिरोंको लागु होता है। उत्तर भारतके पश्चिम भागको अर्थात् भारतकी प्रांतीय पद्धतिके मंदिरों को सच्चे स्वरूपमें नागरादि शैलीका कहा है वह योग्य है ।
- लक्षणसमुच्चय नागरी वर्तना के लिये मध्यप्रदेश, लाट-गुजरात अथवा पश्चिम भारतीय प्रदेशको योग्य मानता है। उपांगवाले चोरसतल पर उर्ध्व वक्र रेखावाले शिखरोंके ऊपर वर्तुल आमलकवाले ऐसी आकृतिके शिखरोंवाले मंदिरों नागर शैलीके व्यापक अर्थ में उस प्रकार में आ जाते हैं। कर्णाटक प्रदेशमें उत्तर भारत के लतिन स्वरूपवाले मंदिर देखने में आते हैं और उत्तर भारत के प्रासादों जो चोरस आकारपर गोल आमलक है उसे वेसरजातिके कई विद्वानों पहचानते हैं। उनको श्री एम. रामराव द्रविडग्रन्थों के आकारसे बताते हैं. लेकिन द्रविडग्रन्थों इस विषयमें अस्पष्ट है। कामिकागम तो कई द्रविड विद्वानों के मतसे विरुद्ध उनको स्पष्टतया उत्तर भारतके मंदिरोंको नागरादि जातिके कहता है।
अपराजितपृच्छाकारके 'मतसे नागरकों जातियोंमें प्रथम कहा जाता है । परन्तु उनकी दि हुई व्याल्याके अनुसार गुजरात राजस्थान और खजुराहो के और एकांडक प्रासादोंका नागर जातिकी मर्यादामें समावेश हो जाता है, परन्तु