________________
हैं। क्योंकि उसके गणितकी रचना इस प्रकार हुई है। सामान्यतया दो फूटका एक गज होता है।
२. यह गणित कहाँसे मिलायें, यह कहा है-मोदर के बाहर के भागमें मिलानेके लिये कहा है। व्यवहार दृष्टिसे कुछ ठीक करने के लिये अंदर भी गणित मिलानेकी कोशिष करता है। जब प्रतिपक्ष कहता है कि बाहरके विभाग कर उसके विभाग पर ओसार-दिवार रखते अंदर जो भाप रहा उसे वहाँ गणित मिलानेकी जरूरत नहीं है, चाहे वह राक्षस गणका नक्षत्र क्यों न हो ? इस पक्षकी बात दुर्लक्ष्य करने योग्य नहीं है। परन्तु जो वहाँ भी गणित मिलाया जाय तो अच्छा ऐसा मेरा मत है।
३ नक्षत्रके विषयमें शिल्पियों देवमंदिरको देवगण, गृहांको मनुष्यगण या यवनको राक्षसगणना नक्षत्र सामान्यतया मिलाते हैं । वह परंपरा है लेकिन ज्योतिषके नियमानुसार देवोंका जन्म नक्षत्र राक्षसगण हो वहाँ देवमंदिरमें राक्षस गण नक्षत्र मिलानेका आग्रह की लोग रखते हैं । शिल्पियोंकी परंपरा जो आगे कही गई है वह है । देवमंदिस्में देवगण ओर मंडपों या चोकी को मनुष्य गण या देवगण नक्षत्र मिलाते हैं । शिल्पियोंकी परंपराका समर्थन करता हुआ ओक पाठ है । परंतु उसे द्वीअर्थी मानते हैं ।
४ शिलास्थापन-मध्यकी कुर्मशिलाके नौ खंडोंमें नौ चिह्नों करनेमें विश्वकर्माके सभी ग्रंथों ओक मत हैं । लेकिन मध्यकालके अंक सूत्रधार वीरपालने 'प्रासादतिलक' ग्रंथमें इन चिहनोंको अग्निकोणके क्रमसे करने के लिये स्पष्टरूपसे कहा है । इस विषयमें शिल्पी वर्गमें चर्चा है । लेकिन अब तक कोई दुराग्रह नहीं है इस बात आनंदकी हय ।
५ शिलास्थापन कहाँ करना ? उस विषयमें सामान्य मतसे गर्भगृहके बिच खडे मध्यगर्भ में शिलास्थापन करना । परंतु देवता पद स्थापनके हिसाबसे जहाँ देव स्थापन करना हो उसके नीचे शिला स्थापन करना चाहिये । वह सूत्र अिस दीपार्णव और ज्ञानरत्नकोषमें है । और नाभि खडी करनेकी प्रथा है। ग्रंथों में उसका स्पष्टीकरण नहीं है । और मध्यकी कूर्मशिलाका प्रमाण भी कहते हैं । परंतु फिरती अष्टशिलाओंका प्रमाण नहीं दिया हुआ है । वहाँ शिल्पियों प्रथाको अनुसरते हैं । जहाँ शास्त्राधार न हो वहाँ शिल्पियों प्रथानुसार वर्ते यह स्वाभाविक है । कूर्मशिलाके कहे हुअ मानके अनुसार लम्बी और उससे आधी चौडी अष्टशिला रखनेकी परंपरा है।