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बीना समजसे विवाद (कम अभ्यासीओंके द्वारा) उठाये जाते हैं । यह निरी अज्ञानता है। प्रतोल्यामें जौर मेघनाद मंडपमें तोरण करते हैं। तव स्तंभ पर ठेकी आडदी चडानेका कहा है ।
९ द्वारमान-इस विषयमें खास वादविवाद नहीं है । सामान्यतया निरंधार प्रासादोंमें ५'-५" या ६'-१" या ६'-९" का द्वारोदय अपने हिसाबसे आयमेल करके रखनेकी प्रथा है । परन्तु विस्तारमान विषयमें बर्तमानकालके यजमानोंका आग्रह द्वारविस्तार अधिक रखनेके लिये होता है । यद्यपि यथा योग्य रीतसे विस्तार हो सके इतना रखना । शास्त्रदृष्टिसे थोडी छूट लेकर करे, परंतु यजमान तो. गर्भगृहमें वाहनको ले जाना हो वैसा दुराग्रह करे तब शिल्पियोंको शास्त्रीय दृष्टिकी मर्यादासे थोडा बड़ा करना, परंतु मर्यादाका विशेष लोप न करना चाहिये ।
१० द्वार-शाखाके नीचे कुंभीवाढको तिलकडे कहे हैं। उनसे अंगुल डेढ अंगुज उदम्बर-उबर नीचा होता है । मंडोवरके थरवाले कुंभावाढसे उंबर अर्ध भागमें, तीसरे भागमें या चौथे भागमें नीचे उतारनेका प्रमाण देते हैं । तो की शिल्पियों उबर नीचे उतारनेके साथ तिलकड़े और मंडपकी कुंभीओं भी उतारेने मतके हैं। यह वादविवाद उग्र होकर चलता है । मेक पक्ष मानता है कि जो "कुंभके न सभा कुंभी' यह प्रमाण है तो तिलकड़ों या कुंमीओंको नीचे नहीं उतार सकते हैं। तिलकडे कुंभा कुंभीको बराबर रख सिर्फ उंबर ही खोडना-नीचे उतारतेका प्रमाण कहा है। इस तरह उबर नीचे उतारना जिससे पर्शनार्थीओंको आने जाने की सानुकूलता रहे। .
"उदम्बरान्ते हृते कुंभि स्तम्भ च पूर्ववत् ।
सांधारे च निरंधारे कुंभि कृत्या उदरम्बम् ।। इस श्लोकका अर्थ-उंबर ही फक्त खोडनाकुम्भी और स्तंभकको तो पूर्ववत् रखना। लेकिन प्रतिपक्ष "उदंबर हृते कुंभिः" का अर्थ उंबर और कुम्भी खोडना-नीचे उतारना ऐसा अर्थ करते हैं। यह वादविवाद जो मध्यस्थ दृष्टिसे देखा जाय तो सांधार प्रासादमें उंचर और कुम्भी नीचे उमारे हुए पुराने कामोंमें देखते हैं। परन्तु निरंधार प्रासादमें उंबरके साथ कुंभी खोडनेका वराबर नहीं है । तो भी हम यह नहीं कह सकते कि ये दोनों पक्ष झूठे हैं।
११. मंडोवर पर विभागमें शास्त्रकारोंने कुम्मा कलश छज्जे तक के बारह, तेरह थरों कहे हैं। परंतु अल्पव्ययके कारण यजमान कम थर करावे उसमें दोष नहीं है। स्तंभ वाढ-समसूत्र जंघा टोच पर होती है और सामान्य रीतसे