Book Title: Kshirarnava
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 13
________________ उसके रूप गुणकी शाश्वतगाथा गाई है। उसकी प्रकृतिसे प्रसन्न भारतीय शिल्पीओंने स्त्री सौंदर्यको मातृत्व भावसे प्रदर्शित किया है जब.युरोपी शिल्पीओंने वासनाके फलरूप स्त्रीको कंडारी है। भारतीय शिल्पीओंने भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृतिको अपना सर्वोत्तम लक्ष्य मानकर राष्ट्रके पवित्र स्थानोंको चुन कर वहाँ अपना जीवन बिताकर विश्वकी शिल्पकलाके इतिहासमें अद्वितीय विशाल भवनोंका निर्माण किया है । दीर्घ काय शिलाओंको तोडकर भूख और तृषाकी भी परवाह किये बिना अपने धर्मकी महत्तम भावनाको राष्ट्रके चरणोंमें समर्पित किया है । जनताने भी शंखनादसे अपने शिल्पकारोंकी अक्षय कीर्तिका चतुर्दिश प्रसारण किया है । पेसे शिल्पीओंकी अद्भूत कलाके कारण जगतने भारतको अमरपद दिया है । ऐसे पुण्यश्लोक शिल्पीओंको कोटि कोटि धन्यवाद ! __ भारतके उत्तम कला धामों पर तेरहवीं सदीके बाद दुर्भाग्यके चक्क पल गये, चारों और धर्माधताके बहुतसे प्रहार सात सौ साल तक हुए, तो भी भारतीय कला और संस्कृति जिवित रही है उसकी दृढ बुनियादको चलित नहीं किया जा सका है । उसके अवशेष भी गौरवप्रद है। आज विदेशी कलापारखुओं आश्चर्य मुग्ध होकर उनको देखते हैं । भारतीय शिल्पीओंने कलाके द्वारा स्वर्गको-वैकुंठको पृथ्वीपर उतारा है। राष्ट्र जीवनको समृद्ध कर प्रेरणा दी है । ऐसी स्थापत्य कलाके प्रति आज राज्य कर्ता सरकार बेपरवाह बनी है । श्रीमंत वर्ग दुर्लक्ष्य करता है यह देशका दुर्भाग्य है । क्षणिक मनोरंजन नृत्यगीतकी कलाको वर्तमानमें राज्याश्रय मिल रहा है । जव स्थायी ऐसी सुंदर शिल्प कलाके प्रति दुर्लक्ष्य किया जाता है। यह भी कालका वैचित्र्य माननेके सिवा और क्या ? भारतीय कलामें आयी हुई विकृति ___ भारतीय कलामें आयी हुई पाश्चात्य विकृति-वर्तमान शिल्प स्थापत्य और चित्र इन तीनों कलाओंमें आयी हुई विकृति प्राचीन भारतीय कलाका विनाश करेगी। १. स्थापत्य में पश्चिमका अनुकरण कर पक्षीके घोंसले जैसे बेढंग और कढंगे विकृत और कलाविहीन भवन बन रहे हैं । २. शिल्प में जहाँ सुंदर मूर्तियोंका सर्जन आँख और मनको आनंद प्रद था उनके स्थान पर सुखे काठके ढूंठे कि, जिनको हाथ, पैर, मुँह था माथाका ठिकाना नहीं है उनकी प्रशंसा करते हैं, जो वास्तवमें विकृति है। ३. चित्रकला उसकी तादृश्यता और छाया

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