Book Title: Kshirarnava
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 10
________________ अंथके संग्रह कर्ता हैं। उनके चौदह गौत्र ऋषि कुलके हैं। वे यज्ञोपवित रखते हैं। सगोत्र लग्न नहीं करते हैं। और मृत्यु के पश्चात् अग्नि संस्कार करते हैं। : २. भारतके पूर्व में उडीयः-ओरिस्सा प्रदेशमें महाराणा नामक शिल्पी वर्ग है । वह शिल्पग्रंथोंका संग्रहकर्ता है। मंदिर बनाता है । हाल में उसका व्यवसाय विशेषतः मूर्तिकलाका है । महाराणा ज्ञातिमें पाषाण कर्म करनेवाले लोगोंको राज्य द्वारा महापात्रका मानद् पदः भी मिला हुआ है । उसी तरह लोह या काटके काम करनेवालोंको 'चौधरी' और 'ओज्ञा'का मानद् पद भी मिला है । खोरधाके राजाने लोहकर्म करनेवाले एक परिवारको 'दास'का पद दिया है । पाषाण कर्म करनेवालोंमें स्थपति मूर्तिकार भी है । इन सभी काष्ठलाहादि कामों करनेवाली एक ही ज्ञाति महाराणा नामकी है। उसमें परस्पर रोटी बेटी व्यवहार है । उन लोगोंमें क्षत्रिय हो या उससे निम्नवर्ग हो यह नहीं कहा जा सकता है । वे यज्ञोपवित नहीं रखते हैं । स्त्रियाँ पुनलग्न कर सकती है । उडीयामें ब्राह्मणादिमें मत्स्याहारकी छूट है । महाराणा ज्ञातिमें मृत्युके बाद अग्निसंस्कार होता है । ३ द्रविड दक्षिण-मदुराई और मद्रासकी और विराट विश्व ब्राह्मण आचार्यके नामसे अपनेको बताता हुआ शिल्पीवर्ग है । बह शिल्पी ग्रंथका संग्रहकर्ता है। मंदिरका और मूर्तिका काम करता है । विधिसे यज्ञोपवित धारण करता है । उस वर्गमें विधवा पुनर्लग्नकी प्रथा है । उसके तीन गोत्र हैं। १ अगस्त्य २ राज्यगुरु ३ सन्मुख सरस्वती सगोत्र लग्न नहीं करता है । मृत्युके बाद भूमिदाह देता है। उस प्रदेश में नायकर, पिल्लेबाल, केन्टर और मुदलीआर असी निम्नजातिके कारीगर शिल्पकाम करते हैं । परंतु वे मूल में शिल्ली जातिके नहीं हैं। महाबलिपुरममें गणपति स्थपति और कांचिपुरममें गौरीशंकर स्थपति वहाँकी शिल्पशालाओंमें अध्यापक हैं। ४ कर्णाटक-मैसुर-आंध्र तैलंगण और महाराष्ट्र प्रदेश में पंचाननके नामसे विश्वकर्मा जातिके शिल्पी वसते हैं। उनके पाँच कर्म व्यवसायके अनुसार उसमें गोत्र हैं। (१) पाषाणकर्मचालेको, गोत्र प्रन्यस (२) लोहकर्म; गोत्र सानस (३) काष्टकम, गोत्र सनातन (४) कंसकार, गोत्र अभनवश्र (५) सुवर्णकार, गोत्र सूपर्यास इन पाँचोंका कर्मके अनुसार गोत्र है । ब्राह्मणके सिवा वे किसीके हाथका भोजन नहीं करते हैं । इन पाँचांमें परस्पर रोटी बेटीका व्यवहार है । चे सगोत्र लग्न नहीं करते हैं । यज्ञोपवित धारण करते हैं । स्त्रियाँ पुनर्लग्न कहीं करती हैं। उनमें कुछ मांसाहारी भी हैं। वे शिल्पग्रंथोंका संग्रह करते

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