Book Title: Kisan Bavni Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 5
________________ (५) हाई नाई, राई नर कड न बसाई ठकुराईको; ॥धाईप दुचाई पढताई माई बाई जाई, लूटयो नांतो टूट्यो तातो किसन सगाईको ॥ इहां तौ सदाई धाम धूमही चलाई पर, उहां तो नही है नाई राज पोपांबाईको ॥१॥ खरमें मेह ऐसो पोखवो अकाज देद, आग ज्यों अ ह याके सबही समेटबो ॥ सदा पुरगंध क्यों दु देत न मुगंध अंध, तातें तैसो धंध यातें सोधेतें लपेटबो का या तो असार यार माया हू न चलै लार, किसन विचा र यमलोक नेट नेटबोकाको अनिमान यह नूट्यो न गवान जान, बांग दे गुमान अंत बारहीमें लेटबो॥११॥ रिदितें न सिदि खरी जो तें जीय केसी जरी, तहां ले ध री जहां प्रवेश न समीरको ॥ खरच्यो न खायो योहि नरके जनम आयो, जा दिनतें जायो सुख पायो न शरी रको ॥ पी जल बन्यो पै न लोदु अनबन्यो जान्यो, किसन कहू न आन्यो त्रास परपीरको ॥ धोखेहीमें जी व दयो नयो न सुकृत लयो, गयो नव खोय नयो नी रको न तीरको ॥ १२ ॥रीतो मौल नांही करै काहुब डाई साच, समरै न सांई कबताई नव खोई है ॥ जे ती तें बुराई गई तेती बनी आई परी, एती चतुराई फुःख वाई अंत होई है ॥ किसन सुनावै सगा कौन न कहा Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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