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दर सेहर विवेकसे है कुंज तब जात निकिसनि है। एते ग जराज आयो पंकज नखारि खायो, नयो नायो विधि को किसन धन धनि ॥ तैसे बहु तेरी तुं तो चाहत ब नाई नाई, तेरी न बनाई बने बनि है सु बनि है ॥३३॥ टरि है न मरन जो परिदै चरन चाहि, करि है शरन जे तुं अमर अमीरको ॥ ताकौ तौ मर न लग्यो लोकसों तर न पग्यो, पापही करन बैठो व्हैके नेजो पीरको ॥ त्रिज गको जाज है किसन महाराज तासों, अरे बिन लाज क रै काज तकसीरको।तातो दो बीर तै सिराश्हीके पीजै बोर, कीजै धीर लीजैगो निबेरो बीर नीरको. ॥३४॥ वा नत अकाज जब जानत कुटुंब काज, आनत न लाज मन मानत मरदमें ॥ कुटुंब विटंब क्रूर मूरख न बू जै मूर, सुखमें हजूर दूर दारुन दरदमें ॥ किसन बसन त्यागी बिसनके रागी पागी,जागी जौलों बाकी देह याति के फरदमें।केति देह रद करी सिंधु सरहद धरी, आख र मरद वेठ मिलेंगे गरदमें ॥ ३५ ॥ मस्यो न करमकर नयो है नरम नर, धयो न धरम धर देष धन धामके। ठग्यो लोक ठाम ठाम लग्यो लोन आठों जाम, दग्यो काम काम नाम जग्यो वेध बामके ॥ बक्यो परनिंदा तक्यो पर रामा एती सब, थक्यो पुन्यसेती पै न बक्यो
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