Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 19
________________ (१७) मजाक है सात चोज है प्रसिह तन मनमें मुंह मुं में पेंन मूढ मनदु नं मुंमे है न, मनहिं हरामी ऐन पैन खामी तनमें ; मनमें है बास तौ किसन कहा बनवास, मन है उदास वे क्यूं न रहे स्वजनमें; नावै लंबे केश रा ख,नावे तो मुंमाय नाख, नावे रहो नवनमें नावे रहो बनमें ॥५६॥ हंस रहै रैन न्यारे काच सोध परहारे, ता रे प्रतिबिंबतें निहारे जैसें लीजियें, मानु मोती गोती साच चूगे तब तूटी चांच, लगी आंच सोचे अब काढू न पतीजिये ॥ किसन गये सु थाने मानसर केलि ग ने मुगता बुएते जाने कहा बुए बीजिये, पिसुनतें द गो पाई जलेको नरोंसो जाई, दूधके जरेतें न्याय बाब फुकि पीजिये ॥ ५७॥ लंकाको अधीश दश शीश जुज वीश जाकों, दयो वर ईश अवनीशता सराहिबी ॥ सा गरकी खाई कुंजरणसे नाई जाकी उसह उहाई कुरा ई अवगाहिबी ॥ ऐसो राज साज गयो नयो जो अका ज एतो, हाथ प्रचुहीके लाज किसन निबाहिबी ॥ फू उहीमें फूले नित लता अन मूले फूले, साहिबकों नूले हूले कैसी ऐसी साहिबी ॥५॥ बीन नये अंग अनं गके तरंग नये, न गये उरित रंग कहा सतसंग है।को घहीमें काम अनिमान मान थानों जाम, मायामें मुका Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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