Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री किसन-बावनी द्वितीयावृत्ति हिंऽस्थानी जापा-पद्य-बह विविध बोधपर वाक्यरूप मौक्तिकनकी मालख्य यह कविता नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. मुंबापुरीमें शानीमसिंह माणक श्रावके "निर्णयसागर” छापखाने में छपाके प्रसिद्ध करीहै. संवत् १ ए३२. सन् १७७६. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री सरस्वत्यैनमः ॥ ॥ अथ किसनबावनी प्रारंभः ॥ सवैया इकतीसा. योङ्कार अमर श्रमार अविकार अज, अजर जं है उदार दारन पुरंतको ॥ कुंजरतें कीट परजंत जगजंत ताके, अंतरको जामी बहु नामी स्वामी संतको ॥ चिं ताको करनहार चिंताको हरनहार, पोखन जरनहार किसन अनंतक ॥ अंतकतें खंत दिन राखे को अनंत बि न, तातें तंत अंतको भरोसो जगवंतको ॥ १ ॥ नमो नित मेव सजि सेव तजि, हमेव नित नर देव गुरु देव सुख करता ॥ दिति खं मंमन विहंमन नरम जर, करम वि मन धरम धुर धरता ॥ करत विहालतें निहाल ततका लमहिं, परम कृपाल प्रतिपाल पाप हरता | किसन पाय जाय पाय सुपसाय जाके, कीजे तातें सेव न उपा य पाय नरता ॥ २ ॥ मरन मरन तम तरन तरनि सम निदत करन घर घरनि रहत है ॥ सुकृत नरन फिर डक हरन चिर, चरन करन अनुसरन सहत है । सुगुरु क रम सुख अमृत ऊरन मुख, कनक बरन बर बरन महत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। कुमति परन परहरन तरन तज, कसन सरन कज सरन गहत है॥३॥ सिदि बुद्धि लायक विधायक विवि धरिदि, वायक सरस वर दायक बरसति॥अगम निगम अवगमन सुगम होत,अगम उद्योत ज्योति परम परस ति ॥ गंजन अगंजनकी नंजन गंनीर नीर, अंजन ज्यों रं जन निरंजन दरसति ॥ संतनि सुहाई नाई याहितें कहा ईआई, किसन सहाई माई सेईये सरसति ॥ ४ ॥ धंध दीमें धायो पै न धायो है धरमरुख, पायो दुःख . पै न पायो सुख पायबो ॥ गायो जान आन पै न गायो जगवान नान, थायो जो न झान कहा नर योनि आयबो ॥ मनमें न मायो अंध काह न न मायो कंध, किसन परैगो खरे तांद पबितायबो॥ यापहीको नायो नायो पापको नपायो पायो, बांधि मूती आयो पै पसारे हाथ जायबो॥५॥अरथ न था वै रथ, अरथ गरथ पथ रखत तखत राज साज बाज शासना ॥ काढू योनि जैबो पूंजी पाखे कहा खैबो, ता तें तैसो तैसो लैबो जातें व्है न तोहि त्रासना॥याज लों अचेत रह्यो किसन न हेत लह्यो, मान अों क ह्यो कर सुगुरु तपासना ॥ बिन बिन बीजे आई देह क जु देह पाई, बासन बिलाई जाई रहे जाई बासना ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालम अहे अयान मालम न है पयान, जालम रहे न जुलमानो मान रहैगो॥ अंतवार ख्वारी परिवा हूं न दे त यारी, गहै नार नारी यार सोहि नार वहैगो ॥ काया अरु माया कैशी बादलकी बाया जैशी, किसन जु ऐशी को अंदेशो दिल दहैगो ॥ जौलौं जीये एह देह तौलौं निस्संदेह देह, व्हैगी देह खेह तब कौन देह कहैगो॥॥ इत उत मोलै कहा दीन बोल बोले, रहा पेटहीके नोले देह लग्यो महा प्रेत है ॥ गरनमें दे दे ग्रास पाल्यो द शमास बास, वाहिकी किसनदास आन बान देत है। चांच दई सोई मिंत चूनकी करैगो चिंत, चिंतही हरगो ऐसो साहिब सचेत है। जानको अजानको जिहानको बिहानहिते, देत सु बिहान कहा तोहिकों न देत है॥णा इहै प्रजुता को जो किसनप्रनु ताको त्याग, बांमीना विनू तितौ विनूति कहा धारी है ॥ जौलों जग तजी नाहि तौलौं नगतजी नाहि, काहेको गुसांईजो गुसांईसों न या रीहै॥काहेको बिरादमन जारी है बिराह मन,कहा पीर जो पैपर पीर न बिचारी है।कैसो वह योगीजन जाको न वि योगी मन आसनहि मारी जान्यो बास नहि मारी है॥॥ उकति उपाई एती उमर गमाई कबु, कीनीन कमाई का म नयो न नलाईको॥औधी जब आई तब कौन है स Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) हाई नाई, राई नर कड न बसाई ठकुराईको; ॥धाईप दुचाई पढताई माई बाई जाई, लूटयो नांतो टूट्यो तातो किसन सगाईको ॥ इहां तौ सदाई धाम धूमही चलाई पर, उहां तो नही है नाई राज पोपांबाईको ॥१॥ खरमें मेह ऐसो पोखवो अकाज देद, आग ज्यों अ ह याके सबही समेटबो ॥ सदा पुरगंध क्यों दु देत न मुगंध अंध, तातें तैसो धंध यातें सोधेतें लपेटबो का या तो असार यार माया हू न चलै लार, किसन विचा र यमलोक नेट नेटबोकाको अनिमान यह नूट्यो न गवान जान, बांग दे गुमान अंत बारहीमें लेटबो॥११॥ रिदितें न सिदि खरी जो तें जीय केसी जरी, तहां ले ध री जहां प्रवेश न समीरको ॥ खरच्यो न खायो योहि नरके जनम आयो, जा दिनतें जायो सुख पायो न शरी रको ॥ पी जल बन्यो पै न लोदु अनबन्यो जान्यो, किसन कहू न आन्यो त्रास परपीरको ॥ धोखेहीमें जी व दयो नयो न सुकृत लयो, गयो नव खोय नयो नी रको न तीरको ॥ १२ ॥रीतो मौल नांही करै काहुब डाई साच, समरै न सांई कबताई नव खोई है ॥ जे ती तें बुराई गई तेती बनी आई परी, एती चतुराई फुःख वाई अंत होई है ॥ किसन सुनावै सगा कौन न कहा Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक ५ ) वै लाल कालतें बुडावे खाडा यावे ऐसो कोई है ॥ श्र रे विवेक नेक कापै गहि गाढी टेक, लेवेकों न एक क देवेों न दोई है ॥ १३ ॥ लिख्यो जु ललाट लेख ता में कहा मीन मेख, करमकी रेख देख टारी हू न ट है चोप करी काढू चूहे सापको पटारो काटयो, सो तौ धन जाने पाने पन्नगके परे है | किसन अनुद्यमहि चव्यो यहि पेट नरि, उद्यमहि करत तुरत चूंवा मरे है ॥ दे खो कौन कर काढु हुन्नर हजार नर, व्है है कबु सोइ जो विधाता नाथ करै है ॥ १४ ॥ लीलाकी लगनमांहि ज्ञानकी जगन नांहि, जग न रहांहि नर तोहि न रहा यबो ॥ चले जर कौन पट क्यूं इहां करत हठ, नदीत ट तरु कौन जांति ठहरायबो | सुपना जहान तामें पना निदान कौन, तप ना किसन जात जातें दुःख जा ययबो || मोहमें मगन सग मघ न धरें हे पग, नगन च लेंगे संग नग न चलायबो ॥ १५ ॥ एक कगे सूर क रै जोजन कपूर पूर, एककूं तो पेट पूर नाजी हू न ता जी है || एक नर गजचढे चढत चपल बाजी, एक पा जी यागे दोरि दोरिवेकों राजी है । एक तो किसन लब देखी लबमी तू लाजी, एक धन हीन मिसकीन दीन मा जी है || कही न परत कुदरत ऐसी कारसाजी, अपने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने यारो बखतकी बाजी है ॥१६॥ऐरावत केसे अंग नहत अनंग जंग,घूमत मतंग लिये शोना मेघश्यामक॥ उत्तम उत्तंग तर तरल तुरंग चंग,सहज सुरंग उप पसम तमामकी॥ मुजरो न पावत है रावतके गठ गढे,आव त कसन पेस केस गाम गामकी ॥ जरे अनिराम धाम दाम ठगम परे बिना, प्रजुनाम बिना प्रनुताई कौन काम की॥१७॥ उसकी कनीती जैसे दानकी अनीपै बनी,ले खिये न बार घनी देखिये जलामल॥जगतकी बाजी ताजी पैन तातें दुजे राजी, देखी जाकी बाजी नटबाजी ज्यों चलाचली ॥ महके किसन जाकी महिमा मुलकमांज, कहावै मुलक मीर मलिक महामली ॥ कालकी अकल बात यातै कब योनि घात, आजकी न जानी जात का लकी कहा चली ॥१॥औषध अनेक एक मोती अति रेक लेक, नेक टेक धरिके विवेक घर आयें ॥ मोसमस मै किसन कीजिये असम श्रम, बैठे क्रम कम पूंजी गां ठकीन खायें ॥ काल काल करत परत आन काल पा स, कालकी न घास कबु आजही बनायें॥कायामें न बाई काई तौलों करिले कमाई, आग लगे मेरे नाई मेह कहां पायें ॥१॥ अंजलीके जल ज्यों घटत पल पल थान, विषसे विषम बीचि सान विषरसके । पंथ " . . Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को मुकाम कबु बापको न गाम यह, जैबो निज धाम तातें कीजै काम यशके।खान सुलतान उमराव राव था न आन, किसन अजान जान कोक न रहि शके ॥ सां क रु बिहान चल्यो जात है जिहान तातें, हम टू निदा न महिमान दिन दशके ॥२०॥ अरब खरब महादरब नयो तो कहा, गरब न कीजै खेल सरब सुपनको। ना रको सो तेह एह छिनमें दिखावे बेह, हर्द ज्यों सरद मेह नेह पर जनकोजोबन जमक चपलाकीसी चमक चल, विषैसुख किसन धनुष किधों घनको ॥ जैसे काच नाजनको नाजनको जोखो तैसे, तनक खरोसो न नरो सो श्न तनको ॥१॥ कोरी कोरी कर कोरी लाखन क रोरी जोरी, तोउ मानै थोरी जान लीजै जग लूटके ॥ मायामें अरूज्यो पर स्वारथ न सूज्यो परमारथ न बज्यो भ्रम नारथतें बूटके ॥ जगतकों देत दगे आन जमदूत लगे, किसन जो सगे वेन नगे न्यारे फूटके ॥ हंस अंस ऐंच लियो अंग रंग नंग नयो, जैसे बीन बजत गयो है तार तूटके ॥२२॥ खेत हेत एक यामें उत्तम अधम क हा, नये पेदा नयो जब जोग मात तातको ॥ कढे सब योनि चार मढे सब चामहिते,गढे सब मातीके गढाव एक गातको ॥ कीरे सब नाजके रुधिर मांश सबनिके, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 5 ) चरो मन मूर्त यो पिंक सात धातको ॥ लायक गुमा नके किसन भगवान जान, कोन जिन करौ अभिमान का बातको ॥ २३ ॥ गंदगी की खान खरे बंदगी की हा नि करे, रिंदगीसी यान धरे ऐसी खोटी खासीयत ॥ रे तकी गढीसी गढी प्रेतकी मढीसी मढी, चामतें चढीसी चित्त नेक नीकी जासीयत ॥ जाके संग सैली मैली फै ली बदफैली ऐसे, मैलदीकी थैली कैसे किसन उजासी यत ॥ केकी कलीसी लगे तनक जलीसी तन, कहा गुन फूलन तिलीसी फुनि बासीयत ॥ २४ ॥ घरी पल पा उ न रहत ठहराव करी, यावै के न यावै फिर लोहके सो -ताव रे ॥ सास तोलौं खास तांहि गौनको प्रयास वैसे, सहज उदास कित रहै कर जाउ रे ॥ ज्यों ज्यों जी जै कामली विशेष त्यों त्यों जारी होत, यागेही किसन यातें कीजिये पान रे ॥ सास सो तौ वा ताके लेखे तेरो बाउ घरे, रान अरु बानको विसास कहा बाउरे ॥ २५ ॥ नायकानि रासो यह बागुरीन नासी, खासी लिये हासी फासी ताके पासमें न परना ॥ पारधी अनं ग फिरै जोहन धनुष धरे, पैन नैन बान खरे ताते तो हि करना ॥ कुच हैं पहार हार नदी रोम राइ तून, कि सब अमृत चैन बैन मुख करना ॥ यहो मेरे मन मृ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग खोली देख ज्ञान दृग, यह बन बोरि कहूं और गेर चरना ॥२६॥ नागनीसी बैनी कारी बागुरासी पाटी पा री, मांग जु समारी चोर गली तोय टरना ॥ तन सर जामों जल यौवन सु ऊख चख, ग्रीव कंबु नुजा सु म गाल मन हरना ॥ नासा शुक दंत दायों नानि कूप क टि सिंह, किसन सुकवी जंघ रंन खन बरना ॥ अहो मेरे मन मृग खोली देख ज्ञान दृग, यह बन बोरि कहूं और और चरना ॥१७॥ चले इह राह खरे शाह पात शाह बरे, धरेहि रहे परे नरे नंमार दामके॥ खूबे दल बादलसे रहे दल बादलहू, मूंबे मनसूबे मनसूबे कौन कामके।तेरी कहा चली नौरे किसन अयाना हो रे, र हेबोरे बाकी थोरे बासर मुकामके ॥ देखे तोरे तोरे जो रे कोरे इतमाम अब, केतक चलावैगो तमाम दाम चा मके ॥श्ना बारहीमें ख्वार खर न्हाति जाति जलचर धरत जटा तुबर बरत पतंग है ॥ध्यान बग धरत रटत राम राम शुक, गामर मुंमावै पा सब सु निहंगहै।स है तरु ताप घर करिके न रहै साप, किसन कुरापा प अन्न नौ अनंग है ॥ रंग वह रंग कबु मोबनको अंग पर, अहै मन चंग तो कगेतहीमें गंग है। ए॥ जीव त जरासा रख जनम जरासा ताप,मर है खरासाका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ल शिरपै खरासा है॥कोन बिरलासा जोपै जीवैप चासा अंत, बन बीच बासा यह बातका खुलासा है। संध्याकासा बान करिवरकासा कान चलदलकासा पा न चपलाकासा उजासा है। ऐसा सार हासा तापै कि सन अनंत पासा, पानीमें बतासा तैसा तनका तमा सा है ॥३० ॥ जानि नूखा प्यासा जान दीजै न निरा सा, कीजै सबका दिलासा सब जीव अपनासा है ॥ खान पान खासा कहा पहिरे नलासा तन, लोन अ धिकासा एती प्रानीकों पियासा है। दगा कासा पासा कीजै वासा जलधरकासा,आवै देखी हासा बिन तोला नि न मासा है॥ऐसा सार हासा तापै किसन अनंत पासा, पानीमें बतासा तैसा तनका तमासा है ॥३१॥ पूंठी का या मायाके जरोसे नरमाया लाया माया दूगमाया प र मूरख पमाया है।ज्यों ज्यों समझाया त्यों त्यों जात मुर काया सुरजैन सुरझाया ऐसा आप उरकाया है॥ काचा पाया पाया तातें कौन चैन पाया, पर साचा सोई साया जो किसन गुन गाया है।दगा दिया काया जानि जमने बु लाया आनि, काल बाज खाया तब याद प्रनु आया है ॥३शानीके मधु पीके मत्त मधुप सरोजहीमें,रुंकी रह्यो जब ढुंकी गयो दिनमनि है। जानिजे हैरात व्है है प्रात Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर सेहर विवेकसे है कुंज तब जात निकिसनि है। एते ग जराज आयो पंकज नखारि खायो, नयो नायो विधि को किसन धन धनि ॥ तैसे बहु तेरी तुं तो चाहत ब नाई नाई, तेरी न बनाई बने बनि है सु बनि है ॥३३॥ टरि है न मरन जो परिदै चरन चाहि, करि है शरन जे तुं अमर अमीरको ॥ ताकौ तौ मर न लग्यो लोकसों तर न पग्यो, पापही करन बैठो व्हैके नेजो पीरको ॥ त्रिज गको जाज है किसन महाराज तासों, अरे बिन लाज क रै काज तकसीरको।तातो दो बीर तै सिराश्हीके पीजै बोर, कीजै धीर लीजैगो निबेरो बीर नीरको. ॥३४॥ वा नत अकाज जब जानत कुटुंब काज, आनत न लाज मन मानत मरदमें ॥ कुटुंब विटंब क्रूर मूरख न बू जै मूर, सुखमें हजूर दूर दारुन दरदमें ॥ किसन बसन त्यागी बिसनके रागी पागी,जागी जौलों बाकी देह याति के फरदमें।केति देह रद करी सिंधु सरहद धरी, आख र मरद वेठ मिलेंगे गरदमें ॥ ३५ ॥ मस्यो न करमकर नयो है नरम नर, धयो न धरम धर देष धन धामके। ठग्यो लोक ठाम ठाम लग्यो लोन आठों जाम, दग्यो काम काम नाम जग्यो वेध बामके ॥ बक्यो परनिंदा तक्यो पर रामा एती सब, थक्यो पुन्यसेती पै न बक्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) रामनामके ॥ में पतिततें पतित पावन किसान प्रनु, न यो हुँतो पतित नरोंसो नाथ नामके ॥३६॥ ढोयोनी च घर हरचंद वर वार नीर, मोलै रघु वीरसे ससीत शी त घाममें ॥ नयो फुःख नागी नल संग लागी त्यागी त्रि य, मुंजसे सनागी नीख मांगी रिपु घाममें ॥ ऐसे ऐसे किसन अनेक नेक नरनको, गयो है सो जनम तमाम इतमाममें ॥ गोते खात गज तहां गामरको कौन गजो, अरै नर बोरे तुंतो कुचके मुकाममें ॥ ३७ ॥ निसाको प्रनंज दिस दिसतें परिद पुंज, जैसे कान कुंज मुनि वा स लेत जसै है ॥होतहिं सकारे जात जात न्यारे न्यारे अरु, प्यारे दु किसन याहि रीति रंग रसै है॥याएही कही दाना पानीके सबब सब, जाहिंगे कहांही याही प्रेम फंद फसे है ॥योग रु वियोगको न कीजिये हरख सोग, पादुनेते घर वसै काके घर बसे है ॥ ३० ॥ तर ल कबान लोधी रयो ताक तान बान, देखत सिंचान उम जात असमान जू ॥ दुःखित कपोतं पोत जानि कुःख श्रोतपोत, समस्यो किसन सामी करुना निधान जू ॥व्या धी है मंस्यो अचान व्याल विकराल आन, लग्यो बूटी बान लूटे बाजदुके प्रानजू ॥ कहा करै हाल क्रम काल अमजाल व्यास,जोपै रहपाल प्रतिपाल नगवान जू॥३॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाटको महिष चल नोगल कपाटको कि दाटको खटा उ कि वटान कोन बाटको ॥ देत पर पीरा प्रेत जानै न जनम हीरा, धावत अधीरा खटकीरा मानौ खाटको । किसन सुहात कुराफत करै जीवघात, थापै नरकात ऐ से जैसे कीट पाटको ॥ सुखतें न सूतो हाहा दूतो है बिगूतो धूतो, धोबी केसो कूतो तूं तो घरको न घाटको ॥४०॥ दियो जोग नारी पै अघातु नाहि पाप कारी, यातें जाचारी पेट चेटका करारी है ॥ यामें चीज मा रीतेती कामहितें टारी, ऐसी किसन निहारी यह को टरी अंधारी है। कहा नर नारी सिह साधक धरमधारी पेटके निखारी प्रति पेटहीते दारी है ॥ पेट वारी थारी न्यारी न्यारी है गुनहगारी, पेटही बिगारी सारी पेटही बिगारी है ॥४१॥ नदी नावकोसो जोग तामें मिल्यो लोग लाख, काको काको कीजे सोग काको काको रोई ये ॥ कहे काको मित परि काकी काको चित याते,सी त मीत पीतम नचीत व्है न सोइये ॥ ध्याश्ये न विमु ख उपाश्ये न कैसे कुःख, पाश्ये न चीज जो आक बीज बोये ॥स्वारथ तजीजै परमारथ किसन कीजै, ज नम पदारथ अकारथ न खोइये ॥४२॥ नरको ज नम वार वार न गमार अरे,अज? समार अवतार न Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) विगोश्ये ॥ लीजेंगो हिसाब तहां दीजेंगो जबाब कहा, कीजें जो सताब तो सताप सिम होइये ॥ पाप करिके अज्ञानी सुखकी कहा कहानी, घृतको निसानी कित पानी जो बीलोइये ॥ स्वारथ तजीजै परमारथ किसन कीजै, जनम पदारथ अकारथ न खोश्ये ॥३॥पाप को समाज साज करत न लाज अाज, पुण्य काज पर त करत काल परसों ॥ जांहि तूं तो जानै मेरो तामें को है प्यारो तेरो, दीन व्है सबसें मेरो कैसी प्रीत परसों। एतो कारबार नार लेके कैसे पावै पार, किसन उतार मार नार सिरपरसों ॥ कालतें अनीत माया जालते अतीत गीत, जानियें सो परम पुनीत नीत परसों५४ फूटयो फाटयो स्वार जाके खुले खट चार बार, पिंज रो असार यार तामें पंखी पौनसो॥ आवत पिबानिये न जांहि जात जानिये न, बोलै तातें मानिये सु डोलै र चिरौनसो॥ करमको पेरयो दाना पानिके सबब घेरयो, रोनक किसन जानि नूट्यो मान बौनसो ॥ पावै औधि दुन तोलों करि है कहुँ न गौन, करै गौन पौन तो तमा सो तामें कौनसो ॥४५॥ बालपने अपने ही ख्यालमें खुशाल लाल, पुन्यकी न चाल खातु खेलत सुखात है। या तरुनाश्ते न आ करुनाइजरा, कायामें जराकी Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) का आइसी दिखातहै॥ गात अन खात होत सिथल सकल गात, किसन जराकी घात वसुधा विख्यात है। अरे अनिमानी प्रानी जानी तेंन ऐसी जानी, पानीके सी नीकला जुवानी चली जात है ॥४६॥ नटक्यो वि सूर नव पूर नवपूर मांऊ, अटक्यो जरूर नूरि नरकनि गोदमें ॥ यो उदनव अब लह्यो जु मनुज नव, धरम धरदु रदु परम प्रमोदमें॥थिर है न कोई नेक जीवितको साहो सोई, किसन बिहाई जोई वासर विनोदमें ॥ ज गत नबीनो सब कालको चबीनो तामो, कबु चाबिली नो बाकी कीनो गहि गोदमें ॥४॥ मीत पाहि गरुर को घुघु ताहि चाहि जोरा, कहो याकी आयही बिला न हाथ घातु है ॥ ऐसी पाई गरुर नलूकही उचायील यो, दूरि दरिबाउकी दरीमें घात जातु है ॥ मन तन रूखो तहां बैठो तो बिलान नूखो, नबन उलूको कियो तबन अखातु है ॥ करताकी करनी न बरनी परै किस न, रिजक रु मोततें न काटुकी वसातु है॥४७॥ जम जैसे सीस परि गढे निस दीश अरि, तासों बिसे बीस हरि ऐसी करि आंधरे ॥ बम दे हरामखोरी बूजी अब बूज तोरी, जगतसें तोरी जगदीशसें तूं सांध रे॥ चला चल साथ न बिसारीये किसन नाथ, जैबो है दिखाते Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) हाथ चढे चिढं कांध रे॥ केती जिंदगानी जापे एती से अनीत गनी, अजौ पानी पहिले गुमानी पालि बांध रे ॥४॥ रूठा जम राना नाना काया कमाना जब,क ठे ह्यांते थाना कहुं करना पयाना है ॥ आगे जो विका ना सो तो मुलक बिराना तहां, गांठहीका खाना दाना बैठे तिन खाना है।तातें मन माना पूर करले खजाना अब, किसन सयाना जो तुं दाना मरदाना है ॥ परे म रियाना मरे चूहा व्है दिवाना जैसे, ऐसे अनजानाना च नाच मरजाना है ॥५॥ लसुनके लिये न्यारी खात कसतूरी मारी, अंबरकी क्यारी बारी चंदन करेबेकी॥ह रख नरानी नरि कंचन कलस रानी, सिंच्यो इंदसानी पा नी गंगाहीको देवेकी॥ दई खुशबोही त्यों त्यों चढ्यो ब दबोई होई, नूलेढुं न करे को श्वा बोई लेवेक॥हाहा रो उपाय करो किसन उपाय दाय, प्रान क्यों न जाय पर प्रकृति न जैवेकी ॥५१॥ वार वार करत पुकार घरि यार यार, होश दुसियार बिसियार सुख पायगो ॥ गई है बहुत आश् रहि है बहुत बाइ, गाफिल गमाई है गमार मार खायगो ॥ खाक हिये खाक होइ रहि है किसन खाक, खाकको खमीर अंत खाकमें समायगो। थापकों हंसायगो हंसायगो कहाके जाय, जंगल बसा - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) यगों न यमतें बसायगो ॥ ५५ ॥ साखी मधुमाखीलों न चाखी अनिलाखी राखी, कहांलों पताल नाखी रासी धन धानकी॥ खेवे पोख पावे प्रानी देवे जस होत जा नी, जानदे हिवानी जे न खानकीन पानकी॥काके सं म गई यह कौनकी किसन नई, रहे करदई कर दई है निदानकी॥ यावत न लाज घात लागे बिन मात जा त, माया बदलात जैसे बाया बदलानकी ॥ ५३ ॥ ख र जु अयान इनसान किन सान बान, कहा मसतान म हा पान मद पानमें ॥ मूह रूढताने आपे थापही बखाने थापे गानमें न काहु थाने जाने ज्ञान ध्या नमें ॥ चलो अनमान जलो नाहिन वृथा गुमान, किसन निदान दिल देदु दया दानमें ॥ मान सीख मेरी व्हैगी ऐसी गति तेरी एद जैसी मूठी ढेरी हेरी राखकी मसानमें ॥ ५५ ॥ खासी चीजे खाते खासे नू षन बनाते जीव जानते दिन न राते राते मान तानमें। सूरत सुहाते रन सुनट कहाते ताते, पोरसके माते न समाते मदमानमें ॥ किसन जु ऐसे नये वेक नीच मीच लऐ, जस लेगये सो नित नयेही जिहानमें।मान सीख मेरी व्दगी ऐसी गति तेरी एह जैसी मूठी ढेरी हेरी रा खकी मसानमें ॥ ५५॥ सहै शीत ताप दाप गहै व्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मजाक है सात चोज है प्रसिह तन मनमें मुंह मुं में पेंन मूढ मनदु नं मुंमे है न, मनहिं हरामी ऐन पैन खामी तनमें ; मनमें है बास तौ किसन कहा बनवास, मन है उदास वे क्यूं न रहे स्वजनमें; नावै लंबे केश रा ख,नावे तो मुंमाय नाख, नावे रहो नवनमें नावे रहो बनमें ॥५६॥ हंस रहै रैन न्यारे काच सोध परहारे, ता रे प्रतिबिंबतें निहारे जैसें लीजियें, मानु मोती गोती साच चूगे तब तूटी चांच, लगी आंच सोचे अब काढू न पतीजिये ॥ किसन गये सु थाने मानसर केलि ग ने मुगता बुएते जाने कहा बुए बीजिये, पिसुनतें द गो पाई जलेको नरोंसो जाई, दूधके जरेतें न्याय बाब फुकि पीजिये ॥ ५७॥ लंकाको अधीश दश शीश जुज वीश जाकों, दयो वर ईश अवनीशता सराहिबी ॥ सा गरकी खाई कुंजरणसे नाई जाकी उसह उहाई कुरा ई अवगाहिबी ॥ ऐसो राज साज गयो नयो जो अका ज एतो, हाथ प्रचुहीके लाज किसन निबाहिबी ॥ फू उहीमें फूले नित लता अन मूले फूले, साहिबकों नूले हूले कैसी ऐसी साहिबी ॥५॥ बीन नये अंग अनं गके तरंग नये, न गये उरित रंग कहा सतसंग है।को घहीमें काम अनिमान मान थानों जाम, मायामें मुका Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) म गहे लोनके उमंग है ॥ नींबकी निबोरी दीती पके तब होत मीठी, किसन तिहारे तो निहारे तेई ढंग है। बूजी तन लेश देश देख कैसे नये केश, काग रंग दुते सोई कागदके रंग है ॥५॥ ज्ञानकी न गूजी गुज ध्या नकी न सूजी खान पानकी न बूजी अब एवं हम मुंदि हे ॥ मुझसो कठोर गुन चोर न हराम खोर, तुजसी न थोर गोर और दौर डेहि हे ॥ अपनीसी कीजे मेरे फे ल पेंन दिल दीजे, किसन निबाहि लीजें जो ज्युहि क्यु हि हे॥मेरो मन मानि यानि उहस्यो तिकानि अब, तेरी गत तूंही जाने मेरी गति तुंहि हे ॥६०॥ शिरी संघराज लोंका गह शिरताज आज, तिनकी कृपा जु कविता पाश् पावनी॥संवत सतर सतसठे विजै दर्शकी ग्रंथकी समापति नई हे मन नावनी ॥ साधवी सुझानी माकी जाई श्री रतन बाई, तजि देह तापरं रची है बिगता वनी ॥ मति कीनी मति लीनी ततही में रुचि दीनी, वाचक किसन किनी उपदेश बावनी ॥ ६१॥ ॥ इति श्री किसन बावनी समाप्त.॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या पुस्तक मुंबै कालकादेवीना रस्तापर निर्णयसागर " प्रेसमां Jain Educationa International 46 पावी प्रगट कj. संवत १९३२ ना जादरवा वद १३ गुरुवार. For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only