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(१५) विगोश्ये ॥ लीजेंगो हिसाब तहां दीजेंगो जबाब कहा, कीजें जो सताब तो सताप सिम होइये ॥ पाप करिके अज्ञानी सुखकी कहा कहानी, घृतको निसानी कित पानी जो बीलोइये ॥ स्वारथ तजीजै परमारथ किसन कीजै, जनम पदारथ अकारथ न खोश्ये ॥३॥पाप को समाज साज करत न लाज अाज, पुण्य काज पर त करत काल परसों ॥ जांहि तूं तो जानै मेरो तामें को है प्यारो तेरो, दीन व्है सबसें मेरो कैसी प्रीत परसों। एतो कारबार नार लेके कैसे पावै पार, किसन उतार मार नार सिरपरसों ॥ कालतें अनीत माया जालते अतीत गीत, जानियें सो परम पुनीत नीत परसों५४ फूटयो फाटयो स्वार जाके खुले खट चार बार, पिंज रो असार यार तामें पंखी पौनसो॥ आवत पिबानिये न जांहि जात जानिये न, बोलै तातें मानिये सु डोलै र चिरौनसो॥ करमको पेरयो दाना पानिके सबब घेरयो, रोनक किसन जानि नूट्यो मान बौनसो ॥ पावै औधि दुन तोलों करि है कहुँ न गौन, करै गौन पौन तो तमा सो तामें कौनसो ॥४५॥ बालपने अपने ही ख्यालमें खुशाल लाल, पुन्यकी न चाल खातु खेलत सुखात है। या तरुनाश्ते न आ करुनाइजरा, कायामें जराकी
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