SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थाटको महिष चल नोगल कपाटको कि दाटको खटा उ कि वटान कोन बाटको ॥ देत पर पीरा प्रेत जानै न जनम हीरा, धावत अधीरा खटकीरा मानौ खाटको । किसन सुहात कुराफत करै जीवघात, थापै नरकात ऐ से जैसे कीट पाटको ॥ सुखतें न सूतो हाहा दूतो है बिगूतो धूतो, धोबी केसो कूतो तूं तो घरको न घाटको ॥४०॥ दियो जोग नारी पै अघातु नाहि पाप कारी, यातें जाचारी पेट चेटका करारी है ॥ यामें चीज मा रीतेती कामहितें टारी, ऐसी किसन निहारी यह को टरी अंधारी है। कहा नर नारी सिह साधक धरमधारी पेटके निखारी प्रति पेटहीते दारी है ॥ पेट वारी थारी न्यारी न्यारी है गुनहगारी, पेटही बिगारी सारी पेटही बिगारी है ॥४१॥ नदी नावकोसो जोग तामें मिल्यो लोग लाख, काको काको कीजे सोग काको काको रोई ये ॥ कहे काको मित परि काकी काको चित याते,सी त मीत पीतम नचीत व्है न सोइये ॥ ध्याश्ये न विमु ख उपाश्ये न कैसे कुःख, पाश्ये न चीज जो आक बीज बोये ॥स्वारथ तजीजै परमारथ किसन कीजै, ज नम पदारथ अकारथ न खोइये ॥४२॥ नरको ज नम वार वार न गमार अरे,अज? समार अवतार न Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005371
Book TitleKisan Bavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages22
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy