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श्री किसन-बावनी
द्वितीयावृत्ति हिंऽस्थानी जापा-पद्य-बह
विविध बोधपर वाक्यरूप मौक्तिकनकी मालख्य यह कविता
नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत
समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
मुंबापुरीमें
शानीमसिंह माणक श्रावके "निर्णयसागर” छापखाने में छपाके
प्रसिद्ध करीहै.
संवत् १ ए३२. सन् १७७६.
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