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॥ श्री सरस्वत्यैनमः ॥ ॥ अथ किसनबावनी प्रारंभः ॥ सवैया इकतीसा.
योङ्कार अमर श्रमार अविकार अज, अजर जं है उदार दारन पुरंतको ॥ कुंजरतें कीट परजंत जगजंत ताके, अंतरको जामी बहु नामी स्वामी संतको ॥ चिं ताको करनहार चिंताको हरनहार, पोखन जरनहार किसन अनंतक ॥ अंतकतें खंत दिन राखे को अनंत बि न, तातें तंत अंतको भरोसो जगवंतको ॥ १ ॥ नमो नित मेव सजि सेव तजि, हमेव नित नर देव गुरु देव सुख करता ॥ दिति खं मंमन विहंमन नरम जर, करम वि
मन धरम धुर धरता ॥ करत विहालतें निहाल ततका लमहिं, परम कृपाल प्रतिपाल पाप हरता | किसन पाय जाय पाय सुपसाय जाके, कीजे तातें सेव न उपा य पाय नरता ॥ २ ॥ मरन मरन तम तरन तरनि सम निदत करन घर घरनि रहत है ॥ सुकृत नरन फिर डक
हरन चिर, चरन करन अनुसरन सहत है । सुगुरु क रम सुख अमृत ऊरन मुख, कनक बरन बर बरन महत
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