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चरो मन मूर्त यो पिंक सात धातको ॥ लायक गुमा नके किसन भगवान जान, कोन जिन करौ अभिमान का बातको ॥ २३ ॥ गंदगी की खान खरे बंदगी की हा नि करे, रिंदगीसी यान धरे ऐसी खोटी खासीयत ॥ रे तकी गढीसी गढी प्रेतकी मढीसी मढी, चामतें चढीसी चित्त नेक नीकी जासीयत ॥ जाके संग सैली मैली फै ली बदफैली ऐसे, मैलदीकी थैली कैसे किसन उजासी यत ॥ केकी कलीसी लगे तनक जलीसी तन, कहा गुन फूलन तिलीसी फुनि बासीयत ॥ २४ ॥ घरी पल पा उ न रहत ठहराव करी, यावै के न यावै फिर लोहके सो -ताव रे ॥ सास तोलौं खास तांहि गौनको प्रयास वैसे, सहज उदास कित रहै कर जाउ रे ॥ ज्यों ज्यों जी जै कामली विशेष त्यों त्यों जारी होत, यागेही किसन यातें कीजिये पान रे ॥ सास सो तौ वा ताके लेखे तेरो बाउ घरे, रान अरु बानको विसास कहा बाउरे ॥ २५ ॥ नायकानि रासो यह बागुरीन नासी, खासी लिये हासी फासी ताके पासमें न परना ॥ पारधी अनं ग फिरै जोहन धनुष धरे, पैन नैन बान खरे ताते तो हि करना ॥ कुच हैं पहार हार नदी रोम राइ तून, कि सब अमृत चैन बैन मुख करना ॥ यहो मेरे मन मृ
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