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तक ५ )
वै लाल कालतें बुडावे खाडा यावे ऐसो कोई है ॥ श्र रे विवेक नेक कापै गहि गाढी टेक, लेवेकों न एक क
देवेों न दोई है ॥ १३ ॥ लिख्यो जु ललाट लेख ता में कहा मीन मेख, करमकी रेख देख टारी हू न ट है चोप करी काढू चूहे सापको पटारो काटयो, सो तौ धन जाने पाने पन्नगके परे है | किसन अनुद्यमहि चव्यो यहि पेट नरि, उद्यमहि करत तुरत चूंवा मरे है ॥ दे खो कौन कर काढु हुन्नर हजार नर, व्है है कबु सोइ जो विधाता नाथ करै है ॥ १४ ॥ लीलाकी लगनमांहि ज्ञानकी जगन नांहि, जग न रहांहि नर तोहि न रहा यबो ॥ चले जर कौन पट क्यूं इहां करत हठ, नदीत ट तरु कौन जांति ठहरायबो | सुपना जहान तामें पना निदान कौन, तप ना किसन जात जातें दुःख जा ययबो || मोहमें मगन सग मघ न धरें हे पग, नगन च लेंगे संग नग न चलायबो ॥ १५ ॥ एक कगे सूर क रै जोजन कपूर पूर, एककूं तो पेट पूर नाजी हू न ता जी है || एक नर गजचढे चढत चपल बाजी, एक पा जी यागे दोरि दोरिवेकों राजी है । एक तो किसन लब देखी लबमी तू लाजी, एक धन हीन मिसकीन दीन मा जी है || कही न परत कुदरत ऐसी कारसाजी, अपने
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