SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १ ) म गहे लोनके उमंग है ॥ नींबकी निबोरी दीती पके तब होत मीठी, किसन तिहारे तो निहारे तेई ढंग है। बूजी तन लेश देश देख कैसे नये केश, काग रंग दुते सोई कागदके रंग है ॥५॥ ज्ञानकी न गूजी गुज ध्या नकी न सूजी खान पानकी न बूजी अब एवं हम मुंदि हे ॥ मुझसो कठोर गुन चोर न हराम खोर, तुजसी न थोर गोर और दौर डेहि हे ॥ अपनीसी कीजे मेरे फे ल पेंन दिल दीजे, किसन निबाहि लीजें जो ज्युहि क्यु हि हे॥मेरो मन मानि यानि उहस्यो तिकानि अब, तेरी गत तूंही जाने मेरी गति तुंहि हे ॥६०॥ शिरी संघराज लोंका गह शिरताज आज, तिनकी कृपा जु कविता पाश् पावनी॥संवत सतर सतसठे विजै दर्शकी ग्रंथकी समापति नई हे मन नावनी ॥ साधवी सुझानी माकी जाई श्री रतन बाई, तजि देह तापरं रची है बिगता वनी ॥ मति कीनी मति लीनी ततही में रुचि दीनी, वाचक किसन किनी उपदेश बावनी ॥ ६१॥ ॥ इति श्री किसन बावनी समाप्त.॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005371
Book TitleKisan Bavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages22
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy