Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 18
________________ ( १७ ) यगों न यमतें बसायगो ॥ ५५ ॥ साखी मधुमाखीलों न चाखी अनिलाखी राखी, कहांलों पताल नाखी रासी धन धानकी॥ खेवे पोख पावे प्रानी देवे जस होत जा नी, जानदे हिवानी जे न खानकीन पानकी॥काके सं म गई यह कौनकी किसन नई, रहे करदई कर दई है निदानकी॥ यावत न लाज घात लागे बिन मात जा त, माया बदलात जैसे बाया बदलानकी ॥ ५३ ॥ ख र जु अयान इनसान किन सान बान, कहा मसतान म हा पान मद पानमें ॥ मूह रूढताने आपे थापही बखाने थापे गानमें न काहु थाने जाने ज्ञान ध्या नमें ॥ चलो अनमान जलो नाहिन वृथा गुमान, किसन निदान दिल देदु दया दानमें ॥ मान सीख मेरी व्हैगी ऐसी गति तेरी एद जैसी मूठी ढेरी हेरी राखकी मसानमें ॥ ५५ ॥ खासी चीजे खाते खासे नू षन बनाते जीव जानते दिन न राते राते मान तानमें। सूरत सुहाते रन सुनट कहाते ताते, पोरसके माते न समाते मदमानमें ॥ किसन जु ऐसे नये वेक नीच मीच लऐ, जस लेगये सो नित नयेही जिहानमें।मान सीख मेरी व्दगी ऐसी गति तेरी एह जैसी मूठी ढेरी हेरी रा खकी मसानमें ॥ ५५॥ सहै शीत ताप दाप गहै व्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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