Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१५) का आइसी दिखातहै॥ गात अन खात होत सिथल सकल गात, किसन जराकी घात वसुधा विख्यात है। अरे अनिमानी प्रानी जानी तेंन ऐसी जानी, पानीके सी नीकला जुवानी चली जात है ॥४६॥ नटक्यो वि सूर नव पूर नवपूर मांऊ, अटक्यो जरूर नूरि नरकनि गोदमें ॥ यो उदनव अब लह्यो जु मनुज नव, धरम धरदु रदु परम प्रमोदमें॥थिर है न कोई नेक जीवितको साहो सोई, किसन बिहाई जोई वासर विनोदमें ॥ ज गत नबीनो सब कालको चबीनो तामो, कबु चाबिली नो बाकी कीनो गहि गोदमें ॥४॥ मीत पाहि गरुर को घुघु ताहि चाहि जोरा, कहो याकी आयही बिला न हाथ घातु है ॥ ऐसी पाई गरुर नलूकही उचायील यो, दूरि दरिबाउकी दरीमें घात जातु है ॥ मन तन रूखो तहां बैठो तो बिलान नूखो, नबन उलूको कियो तबन अखातु है ॥ करताकी करनी न बरनी परै किस न, रिजक रु मोततें न काटुकी वसातु है॥४७॥ जम जैसे सीस परि गढे निस दीश अरि, तासों बिसे बीस हरि ऐसी करि आंधरे ॥ बम दे हरामखोरी बूजी अब बूज तोरी, जगतसें तोरी जगदीशसें तूं सांध रे॥ चला चल साथ न बिसारीये किसन नाथ, जैबो है दिखाते
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