Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ ग खोली देख ज्ञान दृग, यह बन बोरि कहूं और गेर चरना ॥२६॥ नागनीसी बैनी कारी बागुरासी पाटी पा री, मांग जु समारी चोर गली तोय टरना ॥ तन सर जामों जल यौवन सु ऊख चख, ग्रीव कंबु नुजा सु म गाल मन हरना ॥ नासा शुक दंत दायों नानि कूप क टि सिंह, किसन सुकवी जंघ रंन खन बरना ॥ अहो मेरे मन मृग खोली देख ज्ञान दृग, यह बन बोरि कहूं और और चरना ॥१७॥ चले इह राह खरे शाह पात शाह बरे, धरेहि रहे परे नरे नंमार दामके॥ खूबे दल बादलसे रहे दल बादलहू, मूंबे मनसूबे मनसूबे कौन कामके।तेरी कहा चली नौरे किसन अयाना हो रे, र हेबोरे बाकी थोरे बासर मुकामके ॥ देखे तोरे तोरे जो रे कोरे इतमाम अब, केतक चलावैगो तमाम दाम चा मके ॥श्ना बारहीमें ख्वार खर न्हाति जाति जलचर धरत जटा तुबर बरत पतंग है ॥ध्यान बग धरत रटत राम राम शुक, गामर मुंमावै पा सब सु निहंगहै।स है तरु ताप घर करिके न रहै साप, किसन कुरापा प अन्न नौ अनंग है ॥ रंग वह रंग कबु मोबनको अंग पर, अहै मन चंग तो कगेतहीमें गंग है। ए॥ जीव त जरासा रख जनम जरासा ताप,मर है खरासाका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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