Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ (१०) ल शिरपै खरासा है॥कोन बिरलासा जोपै जीवैप चासा अंत, बन बीच बासा यह बातका खुलासा है। संध्याकासा बान करिवरकासा कान चलदलकासा पा न चपलाकासा उजासा है। ऐसा सार हासा तापै कि सन अनंत पासा, पानीमें बतासा तैसा तनका तमा सा है ॥३० ॥ जानि नूखा प्यासा जान दीजै न निरा सा, कीजै सबका दिलासा सब जीव अपनासा है ॥ खान पान खासा कहा पहिरे नलासा तन, लोन अ धिकासा एती प्रानीकों पियासा है। दगा कासा पासा कीजै वासा जलधरकासा,आवै देखी हासा बिन तोला नि न मासा है॥ऐसा सार हासा तापै किसन अनंत पासा, पानीमें बतासा तैसा तनका तमासा है ॥३१॥ पूंठी का या मायाके जरोसे नरमाया लाया माया दूगमाया प र मूरख पमाया है।ज्यों ज्यों समझाया त्यों त्यों जात मुर काया सुरजैन सुरझाया ऐसा आप उरकाया है॥ काचा पाया पाया तातें कौन चैन पाया, पर साचा सोई साया जो किसन गुन गाया है।दगा दिया काया जानि जमने बु लाया आनि, काल बाज खाया तब याद प्रनु आया है ॥३शानीके मधु पीके मत्त मधुप सरोजहीमें,रुंकी रह्यो जब ढुंकी गयो दिनमनि है। जानिजे हैरात व्है है प्रात Jain Educationa Intemational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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