Book Title: Kisan Bavni
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ अपने यारो बखतकी बाजी है ॥१६॥ऐरावत केसे अंग नहत अनंग जंग,घूमत मतंग लिये शोना मेघश्यामक॥ उत्तम उत्तंग तर तरल तुरंग चंग,सहज सुरंग उप पसम तमामकी॥ मुजरो न पावत है रावतके गठ गढे,आव त कसन पेस केस गाम गामकी ॥ जरे अनिराम धाम दाम ठगम परे बिना, प्रजुनाम बिना प्रनुताई कौन काम की॥१७॥ उसकी कनीती जैसे दानकी अनीपै बनी,ले खिये न बार घनी देखिये जलामल॥जगतकी बाजी ताजी पैन तातें दुजे राजी, देखी जाकी बाजी नटबाजी ज्यों चलाचली ॥ महके किसन जाकी महिमा मुलकमांज, कहावै मुलक मीर मलिक महामली ॥ कालकी अकल बात यातै कब योनि घात, आजकी न जानी जात का लकी कहा चली ॥१॥औषध अनेक एक मोती अति रेक लेक, नेक टेक धरिके विवेक घर आयें ॥ मोसमस मै किसन कीजिये असम श्रम, बैठे क्रम कम पूंजी गां ठकीन खायें ॥ काल काल करत परत आन काल पा स, कालकी न घास कबु आजही बनायें॥कायामें न बाई काई तौलों करिले कमाई, आग लगे मेरे नाई मेह कहां पायें ॥१॥ अंजलीके जल ज्यों घटत पल पल थान, विषसे विषम बीचि सान विषरसके । पंथ " . . Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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