________________
प्रस्तावना
[68 भावार्य होत तो कषायमानाचर्णिसूत्रोनी साक्षी वखते अनेकवार जेम यतिवृषभाचार्यनो कर्ता तरीके उल्लेख करों छे, तेम त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी साक्षीओ रजू करती वखते जयधवलाकारे तेना कर्ता तरीके पण यतिवृषभाचार्यना नामनो अकाद स्थले पण उल्लेख को होत पण अचुकाई जोधा मळतुनथी. एटलुज नहीं पण जयधवलाना प्रस्तावनाकार पण उपलब्ध त्रिलोकप्रज्ञप्ति ए यति. वृषभनी कृति होवामां शंकाशील छे. जुओ
"वर्तमानमें त्रिलोकप्रज्ञप्ति ग्रन्थ जिस रूसमें पाया जाता है उसी रूपमें आचार्य यतिवृषभने उसकी रचना की थी इस बात में हमें स देह है। हमें लगता है कि आवार्य यतिवृषभकृत त्रिलोकप्रज्ञप्ति में कुछ अंश ऐसा भी है जो बादमें सम्मिलित किया गया है। और कुछ अंश ऐसा भी है जो किसी कारणले उपलव्य प्रतियों में लिखनेसे छूट भी गया है।" (:०६५)
आ बधां प्रमागो उपरथी आपणे निश्चित करीशकी छीओ के वर्तमान मां उपलब्ध त्रिलोकप्रज्ञप्तिमा कर्ता अंकायमाभाचूर्णिमूत्रना कर्ता नथी, अटलुज नहि पण धवला, जयधवलानी रचना पछी उपलब्ध त्रिलोकरज्ञप्तिनी रचना थई होवानुज विशेष करीने अनुमान थाय छे.
जवधवागारे पण गुणधरवाचक, आर्यमंगु, आर्य नागहस्ती अने यतिवृषभावार्य अंगे वीर संवत ६८३ पछी थयानो जे उल्लेख कयों छे. ते पग आ रीते प्रमाणोथी बाधित थान छे. पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तार पण आ वायतमां जणावे छे
यहाँ पर मै इतना और बतला देना चाहता हूँ कि धवला और जयधवलामें गौतमस्वामी से आचारांगधारी लोहाचार्य तकके श्रुतधर आचार्योकी एकत्र गणना करके और उनकी रूढ काठाणना ६८३ वर्ष की देकर उसके बाद धरसेन और गुणवर आचार्योका नामोल्लेख किया गया है, साथमें इनकी गुरुपरंपराका कोई खास उल्लेख नहीं किया गया और इस तरह इन दोनों आचार्यों का समय यों ही वीरनिर्वाणसे ६८३ वर्ष बादका सूचित किया है यह सूचना ऐतिहासिक दृष्टिसे कहां तक ठीक है अथवा क्या कुछ आपत्तिके योग्य है। इसके विचारका यहां अवसर नहीं है। फिर भी इतना जरूर कह देना होगा कि भूल सूत्र ग्रन्थोंको देखते हुए टीकाकार का यह सूचन कुछ त्रुटि पूर्ण अवश्य जान पड़ता है। जिसका सष्टीकरण फिर किसी समय किया जायगा । (जैन साहित्य और इतिहास पर विशदप्रकाश पृ०८८)
अटले आ बावतमां अमारुं अनुमान अर्बु छे के जयधवलानी रचना वखते पूर्वथी अंक प्रघोप चाल्यो आवतो होय के चर्णिमूत्रनी रचना आर्यमंगु अने आर्यनागहस्तीना अंतेवासीनी छे, ते उपरथी तेमणे मंगलाचरण मां आर्यमंगु अने आर्यनागहस्तीनु स्मरण कयु छे, अने आर्यमंगु अने आयें नागहस्तीनां नाम दिगंबरपट्टावलिमा उपलब्ध नहीं थवाना कारणे तथा प्रस्तुत चूर्णिसूत्र दिगंबराचार्यनी कृति तरीके सिद्ध करवा माटे द्रव्यश्रुतना अधिकारमा लोहार्य सुधीनी पट्टावली आपी, त्यार पछी ओपथी आचार्यपरंपरा अटलु मात्र जणावी गुणधर, आर्यमंगु अने आर्य नागहस्ती वगेरेनो उल्लेख करी दीपो छे. बाकी वीर संवत १००० पछी करायप्राभूतचूर्णिकार थयेल हो तो दिगंबरमान्यतानुसार त्यार पछी मात्र ३०० वर्षना गाळामां थला वीरसेन के जिनसेन आत्रा समर्थ ग्रन्थकारना नाम सिवाय तेना वंश तेनी अन्यकृतिओ वगेरे विषे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org