Book Title: Kasaypahudam Part 10 Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura View full book textPage 2
________________ 10 प्रकाशककी ओरसे कसा पाहुडे (श्री जयधवल जी ) का अर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है । के बाद हो रहा है। नौवाँ भाग चार वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था । आचार्य श्री सुविधिसासर जी वा इस समय देशमें घोषणवहंगाई होस बधाईयादिके व्यय में भी वृद्धि हुई है और इस तरह लागत व्यय पहले से ज्योढ़ा हो गया है। फिर भी मूल्य पुराना ही रखा गया है। ऐसे महान ग्रन्थ बार-बार नहीं छपते । अतः मन्दिरों के शास्त्र भण्डारोंमें इन ग्रन्थराजोंकी एक-एक प्रति सर्वत्र विराजमान अवश्य करना चाहिये । दसवाँ भाग पाठकों के कर-कमलों में यद्यपि इस भागका प्रकाशन चार बर्ष -- यह ऐसा ग्रन्थ है जिसका जिनवाणी से एक तरहसे साक्षात् सम्बन्ध है | पं० आशाधर जीने कहा है ये यजन्ते श्रुतं भक्त्या ते यजन्तेऽब्जसा जिनम् । न किचिदन्तरं प्राहुराप्ता हि श्रुतदेवयोः || जयधवला कार्यालय भदैनी, वाराणसी बी० नि० सं० २४१३ जो शास्त्रकी पुजन करते हैं वे वस्तुतः जिनदेवकी ही पूजन करते हैं । क्योंकि सर्वज्ञदेवने जिनवाणी में और जिनदेवमें कुछ भी अन्तर नहीं कहा है । ग्रतः जिन मन्दिरों और जिन मूर्तियों के निर्माण में द्रव्य व्यय करने के इच्छुक दानी जनोंको जिनवाणीके उद्घारमें भी अपना धन लगाकर सुकीर्ति के साथ सम्यज्ञानके प्रसारमें हाथ बटाना चाहिये । अब इस ग्रन्थके केवल चार भाग शेष हैं। यदि उदार धनिक एक-एक भाग अपनी ओरसे प्रकाशित करा दें तो यह महान कार्य जल्द पूर्ण हो सकता है । अन्तमें हम इस कार्य में सहयोग देनेवाले सभी सज्जनोंका प्राभार मानते हैं । कैलाशचन्द्र शास्त्री मंत्री साहित्य विभाग भा० दि० जैन संघ चौरासी, मथुराPage Navigation
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