Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ प्रकाशककी ओरसे कसायपाहुडके छठे भागके प्रकाशित होनेसे छै मास पश्चात् ही उसके सातवें भागको पाठकोंके हाथों में अर्पित करते हुए हमें सन्तोषका अनुभव होना स्वाभाविक है । छठे भागमें प्रदेशविभक्तिका स्वामित्व अनुयोगद्वार पर्यन्त भाग मुद्रित हुआ है। शेष भाग, मीणाझीण तथा स्थितिके साथ इस सातवें भागमें है। इसीसे इस भागका कलेवर छठे भागसे बहुत अधिक बढ़ गया है। इस भागके साथ प्रदेश विभक्ति अधिकार समाप्त हो जाता है और जयधवलाका भी पूर्वाधं समाप्त हो जाता है। शेष उत्तरार्थं भी सात या आठ भागोंमें प्रकाशित होगा। इस समय बाजारमें कागज की स्थिति युद्धकालीन जैसी हो गई है। कागजका मूल्य ड्योड़ा हो जाने पर भी बाजारमें कागज उपलब्ध नहीं है । अतः अगला भाग प्रकाशित होनेमें विलम्ब होना संभव है। यह भाग भो भा० दिगम्बर जैन संघके अध्यक्ष दानवीर सेठ भागचन्द जी डोंगरगढ़ तथा उनकी दानशीला धर्मपत्नी श्रीमती नवंदाबाईजीके द्वारा प्रदत्त द्रव्यसे हुआ है। कुण्डलपुरमें संघके अधिवेशन पर सेठ साहबने जयधवलाजीके प्रकाशनके लिये ग्यारह हजार रुपया प्रदान किया था। इस वर्ष बामौरामें संघके अधिवेशनके अवसर पर आपने पाँच हजार एक रुपया इसी मदमें और भी प्रदान किया है। सेठ साहब और उनकी धर्मपत्नीकी जिनवाणीके प्रति यह भक्ति तथा उदारता अनुकरणीय है। उनकी इस उदारताके लिये जितना भी धन्यवाद दिया जाये, थोड़ा है। सेठसाहब की इस दानशीलतामें प्रेरणात्मक सहयोग देनेका श्रेय पं. फलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीको है। आप ही जयधवलाके सम्पादन तथा मुद्रणका भार उठाये हुए हैं। अतः मैं पण्डितजी का भी आभारी हूँ। काशीमें गङ्गा तट पर स्थित स्व० बाबू छेदीलालजीके जिन मन्दिरके नीचेके भागमें जयधवला कार्यालय अपने जन्म कालसे ही स्थित है और यह सब स्व , बाबू छेदीलालजीके पुत्र स्वर्गीय बाबू गणेशदास तथा पौत्र बा० सालिगरामजी तथा बा० ऋषभदासजीके सौजन्य तथा धर्मप्रेमका परिचायक है। अतः मैं उनका भी आभारी हूँ। जयधवला कायोलय भदैनी, वाराणसी दीपावली-२४८५ कैलाशचन्द्र शास्त्री मंत्री साहित्य विभाग भा० दि. जैन संघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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