Book Title: Kalpasutra Moolpath Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai View full book textPage 8
________________ कल्प० बारसो. ॥३॥ मिणुग्गदं करित्ता सयणिका अनुश, अनुत्तिा अतुरिअ-मचवल-मसंनंताए अविलंबिआए रायहंससरिसीए गईए, जेणेव सन्नदत्ते मादणे, तेणेव उवागबइ, उवागवित्ता उसनदत्तं मादणं जएणं विजएणं वहावेश, वझवित्ता सुहासणवरगया आसबा वीसना करयलपरिग्गदियं दसनदं सिरसावत्तं मबए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-॥५॥ एवं खलु अहं देवाणुप्पिा ! अऊ सयणिऊसि सुत्तजागरा उंदीरमाणी उदीरमाणी इमेआरूवे उराले जाव सस्सिरीए चनहस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुझा, तंजदा, गय--जाव-सिदिं च॥६॥ एएसिणं 'नरालाणं जाव चनदसएदं महासुमिणाणं के मन्ने क खाणे फल वित्तिविसेसे नविस्स? तएणं से उसनदत्ते मादणे देवाणंदाए मादणीए अंतिए - * एअमहं सुच्चा निसम्म दस्तुळजाव दिअए धाराहयकलंबुझं पिव समुस्ससियरोमकूवे । सुमिणुग्गरं करेइ, करित्ता इंदं अणुपविसइ, ईहं अणुपविसित्ता अप्पणो साहा भदासणवरगया. इसे एयारूवे. देवाणुप्पिय! इति क. मु. अधिकः ॥५॥ For Private Personal Use OnlyPage Navigation
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