Book Title: Kalikal Kalpataru Vijay Vallabhsuriji ka Sankshipta Jivan Charitra
Author(s): Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur
Publisher: Parshwanath Ummed Jain Balashram Ummedpur

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Page 3
________________ पाटण मण्डन श्री पंचासरा पार्श्वनाथ स्वामी का स्तवन ( तर्ज - जवादे जवादे ) लगादे लगादे किनारे किनारे, लगादे तूं नैया को सामे किनारे । ए नाथ इस संसार में, ढूंढूं अनादि से तुझे, सरदार मैं नादार हूँ, आज़ादि बक्षो अब मुझे, जिन्दगी मेरी बिना, तुझ बंदगी बेकार है । करुणा नजर से जो निहारो, दास खेवा पार हो ॥ १ ॥ है आर्जु हरदम मेरी, तुम धर्म की इक शर्ण हो, टल जाय दुनिया की दशा, तुम नाम मेरे कर्ण हो, जिनराज हे करुणा निधे, तुम ध्यान से भव तर्ण हो, वल्लभ गुरु संसार तारक, हृदय का आभर्ण हो ॥२॥ आनंद सिंधु लक्ष्मी दाता, हर्ष के भंडार हो, हे जगत वल्लभ विश्वबन्धु, सर्व के आधार हो, कान्ति तेरी हंस जैसी, विश्व में विस्तार हो, इक झलक उसकी बक्ष मुझको नाथ बेड़ा पार हो ॥ ३ ॥ [ श्रीमद्विजय ललित सूरिजी ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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