Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 438
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ४२४ કલશામૃત ભાગ-૩ શ્રી વાઢક સમયસાર કર્તા-કર્મ અધિકાર મળેલા જીવ અને પુદ્ગલની જુદી જુદી ઓળખાણ (सवैया त्रीसा) जैसैं उसनोदकमैं उदक-सुभाव सीरौ, आगकी उसनता फरस ग्यान लखियै । जैसैं स्वाद व्यंजनमैं दीसत विविधरूप, लौनकौ सुवाद खारौ जीभ-ग्यान चखियै ।। तैसैं घट पिंडमैं विभावता अग्यानरूप, ग्यानरूप जीव भेद-ग्यानसौं परखिये । भरमसौं करमकौ करता है चिदानंद, दरव विचार करतार भाव नखियै ||१६|| (सश-१५-60) पार्थ पोताना स्वमायनो त छ. (ोड) ग्यान-भाव ग्यानी करै, अग्यानी अग्यान । दर्वकर्म पुदगल करै, यह निहचै परवान ||१७|| (--६१) शाननो so4°४ छ, अन्य नथी. (Eas) ग्यान सरूपी आतमा, करै ग्यान नहि और । दरव करम चेतन करै, यह विवहारी दौर ||१८|| ( श-१७-६२) આ વિષયમાં શિષ્યની શંકા. (સવૈયા એકત્રીસા) पुग्गलकर्म करै नहि जीव, कही तुम मैं समुझी नहि तैसी । कौन करै यह रूप कहौं अब, को करता करनी कहु कैसी ॥ Please inform us of any errors on Rajesh@AtmaDharma.com

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