Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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કલશામૃત ભાગ-૩ શ્રી વાઢક સમયસાર
કર્તા-કર્મ અધિકાર મળેલા જીવ અને પુદ્ગલની જુદી જુદી ઓળખાણ
(सवैया त्रीसा) जैसैं उसनोदकमैं उदक-सुभाव सीरौ,
आगकी उसनता फरस ग्यान लखियै । जैसैं स्वाद व्यंजनमैं दीसत विविधरूप,
लौनकौ सुवाद खारौ जीभ-ग्यान चखियै ।। तैसैं घट पिंडमैं विभावता अग्यानरूप,
ग्यानरूप जीव भेद-ग्यानसौं परखिये । भरमसौं करमकौ करता है चिदानंद, दरव विचार करतार भाव नखियै ||१६||
(सश-१५-60)
पार्थ पोताना स्वमायनो त छ. (ोड) ग्यान-भाव ग्यानी करै, अग्यानी अग्यान । दर्वकर्म पुदगल करै, यह निहचै परवान ||१७||
(--६१)
शाननो so4°४ छ, अन्य नथी. (Eas) ग्यान सरूपी आतमा, करै ग्यान नहि और । दरव करम चेतन करै, यह विवहारी दौर ||१८||
( श-१७-६२)
આ વિષયમાં શિષ્યની શંકા. (સવૈયા એકત્રીસા) पुग्गलकर्म करै नहि जीव,
कही तुम मैं समुझी नहि तैसी । कौन करै यह रूप कहौं अब,
को करता करनी कहु कैसी ॥
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