Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૪૩૬
કલશામૃત ભાગ-૩ जथा जोग करम करें पै ममता न धरै,
रहें सावधान ग्यान ध्यानकी टहलमैं । तेई भव सागरके ऊपर है तरै जीव, जिन्हिकौ निवास स्यादवादके महलमैं ।।१५||
(१०-१५-८५)
મૂઢ ક્રિયા તથા વિચક્ષણ ક્રિયાનું વર્ણન. (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं मतवारौ कोऊ कहै और करै और,
तैसैं मूढ़ प्रानी विपरीतता धरतु है । असुभ करम बंध कारन बखानै माने,
मुकतिके हेतु सुभ-रीति आचरतु है || अंतर सुदृष्टि भई मूढ़ता बिसर गई,
ग्यानको उदोत भ्रम-तिमिर हरतु है । करनीसौं भिन्न रहै आतम-सुरूप गहै, अनुभौ अरंभि रस कौतुक करतु है ||१६||
(सश-१६-८६)
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