Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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શ્રી નાટક સમયસારના પદો
માત્ર જ્ઞાન મોક્ષમાર્ગ છે. (સવૈયા એકત્રીસા). मुकतिके साधककै बाधक करम सब,
आतमा अनादिकौ करम मांहि लुक्यौ है। एते पर कहै जो कि पाप बुरौ पुन्न भलौ,
सोई महा मूढ़ मोख मारगसैं चुक्यौ है || सम्यक सुभाउ लिये हियमैं प्रगट्यौ ग्यान,
उरध उमंगि चल्यौ काहूपै न रुक्यौ है । आरसीसौ उज्जल बनारसी कहत आपु, कारन सरूप हैके कारजकैं दुक्यौ है ||१३||
__ (सश-१3-63)
જ્ઞાન અને શુભાશુભ કર્મોનું વર્ણન. (સવૈયા એકત્રીસા) जौलैं अष्ट कर्मको विनास नाही सरवथा,
__ तौलैं अंतरातमामैं धारा दोइ बरनी । एक ग्यानधारा एक सुभासुभ कर्मधारा,
दुहूंकी प्रकृति न्यारी न्यारी न्यारी धरनी ॥ इतनौ विसेस जु करमधारा बंधरूप,
पराधीन सकति विविध बंध करनी । ग्यानधारा मोखरूप मोखकी करनहार, दोखकी हरनहार भौ-समुद्र-तरनी ||१४||
(सश-१४-८४)
યથાયોગ્ય કર્મ અને જ્ઞાનથી મોક્ષ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) समुझैं न ग्यान कहैं करम कियेसैं मोख,
ऐसे जीव विकल मिथ्यातकी गहलमैं । ग्यान पच्छ गहैं कहैं आतमा अबंध सदा,
बरतें सुछंद तेऊ बूड़े है चहलमैं ।।
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