Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 447
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ४33 શ્રી નાટક સમયસારના પદો મોક્ષમાર્ગમાં શુદ્ધોપયોગ જ ઉપાદેય છે (સવૈયા એકત્રીસા) सील तप संजम विरति दान पूजादिक, अथवा असंजम कषाय विषैभोग है। कोऊ सुभरूप कोऊ अशुभ स्वरूप मूल, वस्तुके विचारत दुविध कर्मरोग है || ऐसी बंधपद्धति बखानी वीतराग देव, आतम धरममैं करम त्याग-जोग है । भौ-जल-तरैया रागद्वैषकौ हरैया महा, मोखको करैया एक सुद्ध उपयोग है ||७|| (सश-७-८७) શિષ્ય-ગુરુના પ્રશ્નોત્તર ( સર્વયા એકત્રીસા) सिष्य कहै स्वामी तुम करनी असुभ सुभ, कीनी है निषेध मेरे संसै मन मांही है। मोखके सधैया ग्याता देसविरती मुनीस, तिनकी अवस्था तौ निरावलंब नाही है। कहै गुरु करमकौ नास अनुभौ अभ्यास, ऐसौ अवलंब उनहीकौ उन पांही है। निरुपाधि आतम समाधि सोई सिवरूप, और दौर धूप पुदगल परछांही है ||८|| (१४-८-८८) મુનિ શ્રાવક ની દશામાં બંધ અને મોક્ષ બને છે. (સવૈયા એકત્રીસા) मोख सरूप सदा चिनमूरति, बंधमई करतूति कही है। जावतकाल बसै जहाँ चेतन, तावत सो रस रीति गही है। Please inform us of any errors on Rajesh@AtmaDharma.com

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