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કલશામૃત ભાગ-૩
आतमको अनुभौ जबलैं,
तब शिवरूप दसा निबही है ।
अंध भयौ करनी जब ठानत,
बंध विथा तब फैल रही है ॥ ९ ॥
( Sलश-८-८९ )
મોક્ષની પ્રાપ્તિ અંતર્દષ્ટિથી છે. ( સોરઠા ) अंतर-दृष्टि-लखाउ, निज सरूपकौ आचरन ए परमातम भाउ, सिव कारन येई सदा ||१०||
(Sलश-१०-८०)
બાહ્યદૃષ્ટિથી મોક્ષ નથી. (સોરઠા )
करम सुभासुभ दोइ, पुदगलपिंड विभाव मल । इनसैं मुकति न होइ, नहिं केवल पद पाइए ||११|| ( ऽलश-११-८१ )
આ વિષયમાં શિષ્ય-ગુરુના પ્રશ્નોત્તર (સવૈયા એકત્રીસા ) कोऊ शिष्य कहै स्वामी ! असुभक्रिया असुद्ध,
सुभक्रिया सुद्ध तुम ऐसी क्यै न वरनी । गुरु कहैं जब क्रियाके परिनाम रहैं,
तबलैं चपल उपयोग जोग धरनी ॥ थिरता न आवै तोलैं सुद्ध अनुभौ न होइ,
यातैं दोऊ क्रिया मोख-पंथकी कतरनी । बंधकी करैया दोऊ दुहूमें न भली कोऊ,
बाधक विचारि मैं निसिद्ध कीनी करनी ||१२|| ( Sलश-१२-८२ )
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