Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૪૩ર
કલશામૃત ભાગ-૩ પાપ-પુણ્યની સમાનતામાં શિષ્યની શંકા (ચોપાઈ) कोऊ सिष्य कहै गुरु पाहीं।
पाप पुन्न दोऊ सम नाहीं ॥ कारन रस सुभाव फल न्यारे। एक अनिष्ट लगैं इक प्यारे ||४||
(सश-४-८४)
(सवैया त्रीस) संकलेस परिनामनिसौं पाप बंध होइ,
विसुद्धसौं पुन्न बंध हेतु-भेद मानीयै । पापके उदै असाता ताकौ है कटुक स्वाद,
पुन्न उदै साता मिष्ट रस भेद जानियै ॥ पाप संकलेस रूप पुन्न है विसुद्ध रूप,
दुहूंकौ सुभाव भिन्न भेद यौं बखानियै । पापसौं कुगति होइ पुन्नसैं सुगति होइ, ऐसौ फलभेद परतच्छि परमानियै ||५||
(१४-५-८५)
શિષ્યની શંકાનું સમાધાન (સવૈયા એકત્રીસા) पाप बंध पुन्न बंध दुहूंमै मुकति नाहि,
कटुक मधुर स्वाद पुग्गलकौ पेखिए । संकलेस विसुद्ध सहज दोऊ कर्मचाल,
कुगति सुगति जगजालमैं विसेखिए । कारनादि भेद तोहि सूझत मिथ्यात माहि,
ऐसौ द्वैत भाव ग्यान दृष्टिमैं न लेखिए । दोऊ महा अंधकूप दोऊ कर्मबंधरूप, दुहुंकौ विनास मोख मारगमैं देखिए ||६||
(सश-6-८६)
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