Book Title: Kalashamrut Part 3
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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કલશાકૃત ભાગ-૩
જીવ કર્મનો કર્તા નથી (છપ્પા ) करम पिंड अरु रागभाव, मिलि एक हौंहि नहि । दोऊ भिन्न-सरूप बसहिं, दोऊ न जीवमहि ॥ करमपिंड पुग्गल, विभाव रागादि मूढ़ भ्रम । अलख एक पुग्गल अनंत, किमि धरहि प्रकृति सम ॥ निज निज विलासजुत जगतमहि,
जथा सहज परिनमहि तिम ।
करतार जीव जड़ करमकौ,
मोह-विकल जन कहहि इम ||३५||
( ऽलश-२४-७९)
शुद्धात्मानुभवनुं भाहात्म्य. (छप्पा ) जीव मिथ्यात्व न करै, भाव नहि धरै भरम मल । ग्यान ग्यानरस रमै, होइ करमादिक पुदगल || असंख्यात परदेस सकति, जगमगै प्रगट अति । चिदविलास गंभीर धीर, थिर रहै विमलमति ॥ जब लगि प्रबोध घटमहि उदित,
तब लगि अनय न पेखिये । जिमि धरम-राज वरतंत पुर,
जहं तहं नीति परेखिये ||३६|| ( ऽलश-उप-८०)
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